Thursday 15 December 2016

बहुत कुछ लिख दिया जाता है दिल और दिमाग़ पर

१)
बहुत कुछ लिख दिया जाता है
दिल और दिमाग़ पर
कविता या कहानी लिखने के पहले
काग़ज़ पर सिर्फ़ बिम्ब है
मन के गहरे तल पर
जीवन्त हैं अनुभूतियाँ

२)
इंसान मरता है
सच में मरने के पहले
तनहाइयों में
परेशानियों में और जाने कब कब
और जब वो इन सब से थोड़ा
सा कुछ बचा पाता है
तो वो जीता है ख़ुद को
ख़ुद को जान पाने के लिए

३)
रोशनी और अंधेरे के बीच की लड़ाई
इंसान के भीतर ख़ुद के सच
और ख़ुद में छुपे झूठ की लड़ाई है
झूठ वो जो वो दुनियाभर सामने जीत जाता है
सच वो जो वो जिस से वो ख़ुद हार जाता है

४)
ठहरने और चलने के बीच
साँस के भीतर और बाहर जाने के बीच
या की ज़िंदगी और मौत के बीच
एक पल होता है जहाँ कुछ नहीं होता
और ये पल हर, एक पल में ज़िंदा है
और वही एक पल है, जहाँ हम ज़िंदा है

५)
परछाइयाँ न तो रोशनी दे सकती है
और न ही जला सकती है
वो बस होती है परछाइयों की तरह
दिया जल भी सकता है रोशनी के लिए
जला भी सकता है तबाही के लिए

Wednesday 26 October 2016

ख़्वाब के पार

जब भी सोचा ज़िंदगी में ख़्वाब के पार चलूँ,
ज़िंदगी ख़्वाब है, सोचा कि इस के पार चलूँ।

कह लो जो चाहो, शायद ये आख़िरी पल हो,
कि सोचता हूँ इस कहने सुनने के पार चलूँ।

बना दी तुम ने सरहदें, और सरहदों की दीवारें,
की चलूँ तो शायद इन सरहदों के पार चलूँ ।

अजीब इश्क़ भी है ख़ुद से अजीब रश्क़ भी है,
कहाँ चलूँ मैं कि अब ख़ुद ही के पार चलूँ।

न वो रहगुज़र ही रहे और न हमसफ़र ही रहे,
मुसाफ़िर हूँ, चल रहा हूँ कि सब के पर चलूँ।
 © Gyanendra

Sunday 14 August 2016

'I' between me and myself

I try to know who I am
As the journey started from birth
So to know who I am
I have to give birth again, to my self

With this effort of giving birth
Some thing just get created out of me

some time it is words
a beautiful combination of words
You call it 'Poetry'
Then I am a 'Poet'

Some time it is some color
on a paper
You call it 'Painting'
Then, I am a 'Painter'

I try to reproduce rhythm
by moving my feet, hands and body
You call it 'Dance'
Then, I am a 'Dancer'

So, I am Cook, Philosopher,
Psychologist, Engineer ......etc
Moreover, I am meditator
but still I am not what I am

because of this 'I' between me and myself.

Thursday 28 July 2016

वक़्त कभी नहीं ठहरता

पता नहीं तुम्हें अब भी पता है की नहीं
की ज़िंदगी की मुश्किलें
मुझे तुम्हारे और क़रीब ले जातीं है
और अधखुली खिड़की से आती हवा
आधीअधूरी ज़िंदगी में
तुम्हारे होने का एहसास दे जाती है
और अब इन दिनो मुझे ख़्वाबों पर यक़ीन ज्यादे है
वही एक जगह है जहाँ दिन का ज्यादे वक़्त
तुम्हारे साथ गुज़रता है
और अब भी जब होता हूँ मैं
तिराहे के पास वाले, अहाते के कोने पर
पश्मीना शॉल की लाली और तुम्हारे चेहरे की रंगत
जैसे वक़्त के पुराने फ़्रेम में
तुम्हारे आँखों सी पारदर्शी शीशे से जड़ी हुई साफ़ नज़र आती है
और वक़्त जैसे ठहर सा जाता है
पर ये सच है की वक़्त कभी नहीं ठहरता
किसी के लिए भी नहीं

ज़िंदगी जैसे ऊन का गोला

ज़िंदगी जैसे ऊन का गोला
एक सिरा पकड़ कर
हम उलझ जाते हैं
ताना बाना बुनने में
और बुनते उलझते
कब आख़िरी सिरा आ जाता है
पता ही नहीं चलता

Tuesday 12 July 2016

शाम है और गुफ़्तगू भी

तुम से बेहतर कोई तलाश नहीं,
और कि तुम ही मेरे पास नहीं।

मीन में सागर, सागर में मीन,
फिर भी दोनों की है प्यास वहीं।

शाम है और गुफ़्तगू भी है,
फिर भी खोयी है सारी बात कहीं।

है तो सब कुछ पर अधूरा सा,
जैसे हो सामने पर कोई बात नहीं।

मुसाफ़िर है सफ़र है मुश्किलें भी,
गुज़र जायेगा ये वक़्त कोई बात नहीं। 

Sunday 10 July 2016

खुद को ही पाउँ

जब भी शाम ढले
और जब भी तुम याद आओ

और जब भी हो बारिश
तुम मुझको भिगो जाओ

जब भी फूल खिले
और जब भी तुम याद आओ

और जब जब पवन चले
तुम मुझको छू जाओ

हैरान बहुत हूँ मैं
और बेचैन भी हो जाउँ

जब ओस की बूँदों में
मोती सी चमक पाउँ

तुम मुझ तक आ जाओ
या मैं तुम तक जाउँ

हो दोनों में कुछ भी
मैं खुद को ही पाउँ




Tuesday 31 May 2016

'मातृभाषा'

सारे भाषाविद
झूठे लगते है
देश और भाषा की राजनीति के मोहरे
गढ़ते है 'मातृभाषा' की परिभाषाये

जो अलग नहीं हो सकती
क्यों कि वह देश काल से परे
प्राकृति कि एक निशब्द भाषा है

क्यों कि
वह किसी भी
माँ द्वारा कहे
पहले अनकहे बोल है

वह भाषा
प्रेम के पहले अनकहे शब्द है
एक माँ की भाषा, 'मातृभाषा'


Tuesday 24 May 2016

सभ्यतायें

सभ्यताएँ
जो नहीं रोप पाती है
प्रेम के बीज
समाज में और
आने वाली पीढ़ी में
वो मर जाती हैं

सभ्यतायें जो नहीं दे पातीं हैं
दिशा, समन्वय और सौहार्द का
उन का अंत हो जाता है

सभ्यतायें जो सिर्फ़ दे जातीं है
झूठा अभिमान और झूठा गर्व
काल के पटल पर रह जाती है
बन कर एक बीता इतिहास

सभ्यतायें गतिमान होती है
नये के साथ पुराने का समन्वय से
वो हत्यायें नहीं करतीं है
वो प्रेम को जीवंत कर देती है

सभ्यतायें वो नहीं है
जो तुम तय करते हो
देश, व्यवस्था, धर्म और जाति से
सभ्यतायें जन्म लेती है मानवता से
शांति और प्रेम से

Monday 23 May 2016

बुद्ध और जापान


उन्होंने जाना, 'शालीनता'
युद्ध में विजय पाने से
कहीं ज़्यादे महान
व्यक्तिक गुण है

उन्होंने दूर देश
के एक अजनबी
व्यक्ति को जाना
और आत्मसात किया

उन्होंने जाना
शरीर से ज़्यादे
मन में बल है
पराक्रम को स्वीकारना
मन के बल क़ी जीत है


उन्होंने बनाये
युद्ध के नियम
दूसरों में मारने के नहीं
सिर्फ़ पराक्रम को पहचानने के
और एक दूसरे का सम्मान करने के


जीवन सुगम पथ

कलरव क्रंदन
जीवन सुगम पथ
सरस सरल जल प्रवाह

मीन मीन, जल
जल जल, मीन
स्वयम् में अनंत का भाव

चलती फिरती लाशें

चारों ओर
चलती फिरती लाशें 
देखता हूँ
टटोलता हूँ खुद को
मैं उन में से एक तो नहीं

फिर झिझोड़ता हूँ 
लाशों कों
कि जान बाकी हो
कि जान नहीं होता
हाड़ माँस का लाश

Monday 16 May 2016

निश्छल

निर्मल-कोमल
कोमल-शीतल
शीतल-पावन
और निश्छल हों।

हम जो देखें
और जो जानें
बस वो माने
जीवन सफल हो।

प्रेम स्वयं में
और जगति में
और जगति के
हर कण कण में।

प्रेम भाव में
निश्छल मन से
प्रेम जगति में देखे
वो सफल हो।

Sunday 15 May 2016

ख़्वाब और हक़ीक़त

तुम किसी ख़्वाब से ख़ूबसूरत हो की तुम हक़ीक़त हो,
तुम्हें चाहने और न भूलने के सिवा कोई रास्ता ही नहीं।

कि तुम हो न सके अपने ये भी सच है लेकिन,
तुम ग़ैर भी न हो पाओगे झूठ ये भी तो नहीं।

और की दुनिया की ख़्वाहिश हो, की दो पर लग जायें,
ज़मीन पर हो पाँव उस से बेहतर मुझे कुछ लगा ही नहीं।

की बदलते ख़्वाब से हैं मेरे देश की तक़दीर दिखाने वाले,
हक़ीक़त ये है की वो तस्वीर में कहीं भी है ही नहीं।

और की झूठ के पर हो सकते है, 'मुसाफ़िर' उड़ भी सकता हैं,
पर इस सफ़र में दो गज़ ज़मीन मिले ये मयस्सर ही नहीं।

Tuesday 3 May 2016

माँयें प्रकृति अस्तित्व

(१)
स्‍थूल, 
सूक्ष्म, 
अतिसूक्ष्म
सूक्ष्मअतिसूक्ष्म
साँसों के प्रवाह 
और अंततः शून्य 
हमारा अस्तित्व

(२)
उम्र की दहलिज़ पर माँयें
प्रकृति के और क़रीब हो कर 
समेट लेतीं हैं 
चेहरे की रेखाओं में 
जीवन के उतार चढ़ाव के अनुभव
और दिलों में सभी के लिये प्यार
पुरूष प्रकृति से दूर 
चूक जाते हैं हर बार 
बार बार 

(३)
तुम्हारे और मेरे 
स्वास और उच्छवांस के बीच 
एक शून्य 
जहां तुम में तुम्हारा और 
मुझ में मेरा कुछ शेष नहीं होता 
वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं 
जो तुम्हें मुझ से 
या मुझे तुम से 
अलग करता हो

Tuesday 22 March 2016

प्रेम

सुनो,
संसार में खोजे बनाये गये सारे शब्द, झूठे हो जाते है,
क्यों की ये सारे शब्द मिल कर भी एक शब्द 'प्रेम' की व्याख्या नहीं कर पाते।
और अंतत: यह शब्द 'प्रेम' भी झूठा हो जाता है,
क्यों की इस शब्द की आवाज़ भी बता नहीं सकती की ये क्या है।
और जब सारे शब्द और विचार को हम छोड़ देते है,
तब गहरे हमारे भीतर जो शून्य बचता है,
वहाँ प्रेम स्थापित कर लेता है खुद को, शब्द से परे, शरीर से परे एक उर्जा के रूप में।
अनंत से अनंत तक फैली उर्जा, जिसे जानने ते लिये उस के अनुभव से गुज़रना होगा, शब्द को छोड़ कर।

मुझे तब तक न कहना होली खेलने को

सुनो,
प्रेम की कहीं हाट लगती हो तो बताना,
बिक जाना चाहता हूँ, उस को पाने के लिये।

या कि,
कही मिलता हो वो रंग, और वो रंगरेज़,
जिस में रंग कर खुद को, भूल कर, खुद को पा लें।

या कि,
कही मिल जाये एक सूत्र,
जिस से मेरे अस्तित्व की समस्त उर्जायें सिमट कर ख़त्म कर दे सारा भ्रम।

सुनो,
मुझे तलाश है।
और एक इंतज़ार भी।

और हाँ, तब तक मुझे होली खेलने को न कहना,
मुझे ये सारे रंग फीके लगते है, सब उतर जाते है। 

Monday 8 February 2016

चलो फिर

चलो फिर नींद से सूरज को जगाया जाये,
चलो फिर से एक नया उजाला लाया जाये।
चलो की ख़्वाब की धरती और हक़ीक़त के पाँव है,
चलो की आसमान छूने की मंज़िल उस ठांव है।
चलो की रोशनी उजाले पर सबका ही हक़ है,
चलो की ज़िंदगी का नाम चलना है, जब तक है।
चलो की जानना है, खुद को और खुदा को भी,
चलो की कर रहा है, इंतज़ार वो भी तो बरसों से।

Saturday 30 January 2016

प्रेम-वासना-बुद्ध

सच यही है,
तुम्हें पहली बार देखते ही
जो भावनायें उठीं उस में प्रेम और वासना दोनों थे
परन्तु एक आकर्षण जो तुम्हारे चेहरे पर था
वो तुम्हारे भीतर के गहरे प्रेम का आकर्षण था
तुम्हारे प्रेम की ऊष्मा में तिरोहित हो जाते है वासना के विकार
और जब मै तुम्हें देखता हूं सौम्य निश्छल चेहरे को
तुम्हारे भीतर बैठे बुद्ध को
और फिर जो घटित होता है, वो आँखो से बहती अश्रुधार
मैं समझ पाता हूँ तुम्हारे क़रीब आने के लिये
प्रकृति द्वारा रचित वासना रूपी कारक को
और उस के पीछे प्रकृति के मूल प्रेम को
जो  आदि से अनंत तक हमारा अस्तित्व है

Thursday 28 January 2016

जिंदगी-ट्रेन-लड़की-चाय

ट्रेन डब्बा मुसाफिर जिंदगी
तेज धीमी रफ़्तार समय
भागते हांफाते आराम

बैठे तो रेत जैसे जिंदगी
हथेली किसी के हाथ में
फिसल जाता है, हाथ भी रेत सा

सड़क पर नज़रे बचाकर
डरी सहमी सी भागती जिंदगी
पीछे निराशा में डूबे
कुंठित लोगों की फब्तियाँ

कनों मे वो आवाज़ न पड़े
वो दिल को भेदती आवाज़
कड़वाहट और मिठास
जैसे कड़ी पत्ती चाय

जिंदगी बिना दूध कड़ी पत्ती चाय
गरम फिर भी अच्छी है
जैसे भागती रहती हो
रुकी ठंडी हुई और ख़तम

Saturday 23 January 2016

ज़िंदा मुर्दों के देश में

वो रात
जैसे ख़त्म ही न हो रही थी 
एक नौजवान की मौत हुई थी 
और जैसे सदियों के दर्द से करांहती आत्मायें 
नींद से जाग गयीं थीं 
और की दर्द की पराकाष्ठा पर क़राह रहीं थी 
मैंने उन के शरीर पर कोड़ों के निशान देखे 
वही कोड़े जिन से तुम्हारे बाप दादे 
घोड़ों के जाबुक का काम लेते थे 
सब दर्द से करांहती  लाशें जागी थी 
कि एक नौजवान की मानसिक यातनायें 
वो अपने भीतर महसूस करने लगी थी 
महसूस कर रहीं थी गले पर कसते फंदे से घुटते हुये दम को
और उनकी आँखे और जीभ बाहर आ गये थे दम घुटने से 
पर अब वो मानसिक यातनाओं से मुक्ति पा चुकी थीं
पर देख रहा हूँ की  शहर  मुर्दा घर हुये पड़े है
लोग हैं की लाश की तरह बेसुध है 
जैसे कुछ हुआ ही नहीं 
वो शायद किसी क़रीबी के मौत पर ही जागते है 
और जैसे हम है ज़िंदा मुर्दों के देश में


Monday 18 January 2016

भाड़ में जाये तुम्हरी ये परम्परायें

सुनो, जब तुम ब्राह्मण कहते हो मुझे
तो मै सदियों से हो रहे दमन
और अत्याचार का हिस्सेदार हो जाता हूँ
पैदा होते ही तुम ने थोप दी है
ये परम्परायें
ये संस्कृति
तो मैं कहता हूँ
भाड़ में जाये
तुम्हरी ये परम्परायें
तुम्हारी तथा कथित हज़ारों साल की संस्कृति
भाड़ में जाये तुम्हारी जाति-धर्म की व्यवस्था
और सुनों जब तुम गर्व करते हो
बुद्ध का नाम ले कर
कबीर का उदाहरण दे कर
तो तुम दुनिया के सबसे घृणित व्यक्ति लगते हो
क्यों की तुम जैसे लोगों ने यहाँ से बुद्ध को संस्कृति और धर्म के नाम पर खदेड़ा था
तुम ने हत्यायें की है
सदियों से हत्यारे हो तुम
और पूरी मानवता लज्जित हो जाती है

जीवन सफ़र

 सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र  रास्तों के काँटे अपने  अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...