चारों ओर
चलती फिरती लाशें
देखता हूँ
टटोलता हूँ खुद को
मैं उन में से एक तो नहीं
फिर झिझोड़ता हूँ
लाशों कों
कि जान बाकी हो
कि जान नहीं होता
हाड़ माँस का लाश
सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र रास्तों के काँटे अपने अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...
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