Monday, 8 February 2016

चलो फिर

चलो फिर नींद से सूरज को जगाया जाये,
चलो फिर से एक नया उजाला लाया जाये।
चलो की ख़्वाब की धरती और हक़ीक़त के पाँव है,
चलो की आसमान छूने की मंज़िल उस ठांव है।
चलो की रोशनी उजाले पर सबका ही हक़ है,
चलो की ज़िंदगी का नाम चलना है, जब तक है।
चलो की जानना है, खुद को और खुदा को भी,
चलो की कर रहा है, इंतज़ार वो भी तो बरसों से।

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-02-2016) को ''चाँद झील में'' (चर्चा अंक-2248)) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    चर्चा मंच परिवार की ओर से स्व-निदा फाजली और अविनाश वाचस्पति को भावभीनी श्रद्धांजलि।

    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. प्रेरक रचना ।

    ReplyDelete
  3. प्रेरक रचना ।

    ReplyDelete

जीवन सफ़र

 सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र  रास्तों के काँटे अपने  अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...