Tuesday 31 May 2016

'मातृभाषा'

सारे भाषाविद
झूठे लगते है
देश और भाषा की राजनीति के मोहरे
गढ़ते है 'मातृभाषा' की परिभाषाये

जो अलग नहीं हो सकती
क्यों कि वह देश काल से परे
प्राकृति कि एक निशब्द भाषा है

क्यों कि
वह किसी भी
माँ द्वारा कहे
पहले अनकहे बोल है

वह भाषा
प्रेम के पहले अनकहे शब्द है
एक माँ की भाषा, 'मातृभाषा'


Tuesday 24 May 2016

सभ्यतायें

सभ्यताएँ
जो नहीं रोप पाती है
प्रेम के बीज
समाज में और
आने वाली पीढ़ी में
वो मर जाती हैं

सभ्यतायें जो नहीं दे पातीं हैं
दिशा, समन्वय और सौहार्द का
उन का अंत हो जाता है

सभ्यतायें जो सिर्फ़ दे जातीं है
झूठा अभिमान और झूठा गर्व
काल के पटल पर रह जाती है
बन कर एक बीता इतिहास

सभ्यतायें गतिमान होती है
नये के साथ पुराने का समन्वय से
वो हत्यायें नहीं करतीं है
वो प्रेम को जीवंत कर देती है

सभ्यतायें वो नहीं है
जो तुम तय करते हो
देश, व्यवस्था, धर्म और जाति से
सभ्यतायें जन्म लेती है मानवता से
शांति और प्रेम से

Monday 23 May 2016

बुद्ध और जापान


उन्होंने जाना, 'शालीनता'
युद्ध में विजय पाने से
कहीं ज़्यादे महान
व्यक्तिक गुण है

उन्होंने दूर देश
के एक अजनबी
व्यक्ति को जाना
और आत्मसात किया

उन्होंने जाना
शरीर से ज़्यादे
मन में बल है
पराक्रम को स्वीकारना
मन के बल क़ी जीत है


उन्होंने बनाये
युद्ध के नियम
दूसरों में मारने के नहीं
सिर्फ़ पराक्रम को पहचानने के
और एक दूसरे का सम्मान करने के


जीवन सुगम पथ

कलरव क्रंदन
जीवन सुगम पथ
सरस सरल जल प्रवाह

मीन मीन, जल
जल जल, मीन
स्वयम् में अनंत का भाव

चलती फिरती लाशें

चारों ओर
चलती फिरती लाशें 
देखता हूँ
टटोलता हूँ खुद को
मैं उन में से एक तो नहीं

फिर झिझोड़ता हूँ 
लाशों कों
कि जान बाकी हो
कि जान नहीं होता
हाड़ माँस का लाश

Monday 16 May 2016

निश्छल

निर्मल-कोमल
कोमल-शीतल
शीतल-पावन
और निश्छल हों।

हम जो देखें
और जो जानें
बस वो माने
जीवन सफल हो।

प्रेम स्वयं में
और जगति में
और जगति के
हर कण कण में।

प्रेम भाव में
निश्छल मन से
प्रेम जगति में देखे
वो सफल हो।

Sunday 15 May 2016

ख़्वाब और हक़ीक़त

तुम किसी ख़्वाब से ख़ूबसूरत हो की तुम हक़ीक़त हो,
तुम्हें चाहने और न भूलने के सिवा कोई रास्ता ही नहीं।

कि तुम हो न सके अपने ये भी सच है लेकिन,
तुम ग़ैर भी न हो पाओगे झूठ ये भी तो नहीं।

और की दुनिया की ख़्वाहिश हो, की दो पर लग जायें,
ज़मीन पर हो पाँव उस से बेहतर मुझे कुछ लगा ही नहीं।

की बदलते ख़्वाब से हैं मेरे देश की तक़दीर दिखाने वाले,
हक़ीक़त ये है की वो तस्वीर में कहीं भी है ही नहीं।

और की झूठ के पर हो सकते है, 'मुसाफ़िर' उड़ भी सकता हैं,
पर इस सफ़र में दो गज़ ज़मीन मिले ये मयस्सर ही नहीं।

Tuesday 3 May 2016

माँयें प्रकृति अस्तित्व

(१)
स्‍थूल, 
सूक्ष्म, 
अतिसूक्ष्म
सूक्ष्मअतिसूक्ष्म
साँसों के प्रवाह 
और अंततः शून्य 
हमारा अस्तित्व

(२)
उम्र की दहलिज़ पर माँयें
प्रकृति के और क़रीब हो कर 
समेट लेतीं हैं 
चेहरे की रेखाओं में 
जीवन के उतार चढ़ाव के अनुभव
और दिलों में सभी के लिये प्यार
पुरूष प्रकृति से दूर 
चूक जाते हैं हर बार 
बार बार 

(३)
तुम्हारे और मेरे 
स्वास और उच्छवांस के बीच 
एक शून्य 
जहां तुम में तुम्हारा और 
मुझ में मेरा कुछ शेष नहीं होता 
वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं 
जो तुम्हें मुझ से 
या मुझे तुम से 
अलग करता हो

जीवन सफ़र

 सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र  रास्तों के काँटे अपने  अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...