(१)
स्थूल,
सूक्ष्म,
अतिसूक्ष्म
सूक्ष्मअतिसूक्ष्म
साँसों के प्रवाह
और अंततः शून्य
हमारा अस्तित्व
(२)
उम्र की दहलिज़ पर माँयें
प्रकृति के और क़रीब हो कर
समेट लेतीं हैं
चेहरे की रेखाओं में
जीवन के उतार चढ़ाव के अनुभव
और दिलों में सभी के लिये प्यार
पुरूष प्रकृति से दूर
चूक जाते हैं हर बार
बार बार
(३)
तुम्हारे और मेरे
स्वास और उच्छवांस के बीच
एक शून्य
जहां तुम में तुम्हारा और
मुझ में मेरा कुछ शेष नहीं होता
वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं
जो तुम्हें मुझ से
या मुझे तुम से
अलग करता हो
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05-95-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2333 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
सहृदय आभार !!!
Deleteबहुत सुन्दर ,,,
ReplyDeleteसहृदय आभार !!!
Deleteसुन्दर!
ReplyDeleteसहृदय आभार !!!
Deleteसुन्दर!
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