जब भी शाम ढले
और जब भी तुम याद आओ
और जब भी हो बारिश
तुम मुझको भिगो जाओ
जब भी फूल खिले
और जब भी तुम याद आओ
और जब जब पवन चले
तुम मुझको छू जाओ
हैरान बहुत हूँ मैं
और बेचैन भी हो जाउँ
जब ओस की बूँदों में
मोती सी चमक पाउँ
तुम मुझ तक आ जाओ
या मैं तुम तक जाउँ
हो दोनों में कुछ भी
मैं खुद को ही पाउँ
और जब भी तुम याद आओ
और जब भी हो बारिश
तुम मुझको भिगो जाओ
जब भी फूल खिले
और जब भी तुम याद आओ
और जब जब पवन चले
तुम मुझको छू जाओ
हैरान बहुत हूँ मैं
और बेचैन भी हो जाउँ
जब ओस की बूँदों में
मोती सी चमक पाउँ
तुम मुझ तक आ जाओ
या मैं तुम तक जाउँ
हो दोनों में कुछ भी
मैं खुद को ही पाउँ
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