Thursday 28 July 2016

वक़्त कभी नहीं ठहरता

पता नहीं तुम्हें अब भी पता है की नहीं
की ज़िंदगी की मुश्किलें
मुझे तुम्हारे और क़रीब ले जातीं है
और अधखुली खिड़की से आती हवा
आधीअधूरी ज़िंदगी में
तुम्हारे होने का एहसास दे जाती है
और अब इन दिनो मुझे ख़्वाबों पर यक़ीन ज्यादे है
वही एक जगह है जहाँ दिन का ज्यादे वक़्त
तुम्हारे साथ गुज़रता है
और अब भी जब होता हूँ मैं
तिराहे के पास वाले, अहाते के कोने पर
पश्मीना शॉल की लाली और तुम्हारे चेहरे की रंगत
जैसे वक़्त के पुराने फ़्रेम में
तुम्हारे आँखों सी पारदर्शी शीशे से जड़ी हुई साफ़ नज़र आती है
और वक़्त जैसे ठहर सा जाता है
पर ये सच है की वक़्त कभी नहीं ठहरता
किसी के लिए भी नहीं

ज़िंदगी जैसे ऊन का गोला

ज़िंदगी जैसे ऊन का गोला
एक सिरा पकड़ कर
हम उलझ जाते हैं
ताना बाना बुनने में
और बुनते उलझते
कब आख़िरी सिरा आ जाता है
पता ही नहीं चलता

Tuesday 12 July 2016

शाम है और गुफ़्तगू भी

तुम से बेहतर कोई तलाश नहीं,
और कि तुम ही मेरे पास नहीं।

मीन में सागर, सागर में मीन,
फिर भी दोनों की है प्यास वहीं।

शाम है और गुफ़्तगू भी है,
फिर भी खोयी है सारी बात कहीं।

है तो सब कुछ पर अधूरा सा,
जैसे हो सामने पर कोई बात नहीं।

मुसाफ़िर है सफ़र है मुश्किलें भी,
गुज़र जायेगा ये वक़्त कोई बात नहीं। 

Sunday 10 July 2016

खुद को ही पाउँ

जब भी शाम ढले
और जब भी तुम याद आओ

और जब भी हो बारिश
तुम मुझको भिगो जाओ

जब भी फूल खिले
और जब भी तुम याद आओ

और जब जब पवन चले
तुम मुझको छू जाओ

हैरान बहुत हूँ मैं
और बेचैन भी हो जाउँ

जब ओस की बूँदों में
मोती सी चमक पाउँ

तुम मुझ तक आ जाओ
या मैं तुम तक जाउँ

हो दोनों में कुछ भी
मैं खुद को ही पाउँ




जीवन सफ़र

 सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र  रास्तों के काँटे अपने  अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...