तुम से बेहतर कोई तलाश नहीं,
और कि तुम ही मेरे पास नहीं।
मीन में सागर, सागर में मीन,
फिर भी दोनों की है प्यास वहीं।
शाम है और गुफ़्तगू भी है,
फिर भी खोयी है सारी बात कहीं।
है तो सब कुछ पर अधूरा सा,
जैसे हो सामने पर कोई बात नहीं।
मुसाफ़िर है सफ़र है मुश्किलें भी,
गुज़र जायेगा ये वक़्त कोई बात नहीं।
और कि तुम ही मेरे पास नहीं।
मीन में सागर, सागर में मीन,
फिर भी दोनों की है प्यास वहीं।
शाम है और गुफ़्तगू भी है,
फिर भी खोयी है सारी बात कहीं।
है तो सब कुछ पर अधूरा सा,
जैसे हो सामने पर कोई बात नहीं।
मुसाफ़िर है सफ़र है मुश्किलें भी,
गुज़र जायेगा ये वक़्त कोई बात नहीं।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14-07-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2403 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद