Thursday 30 July 2020

ओ मेरे रफ़ूगर

(१)
ओ मेरे रफ़ूगर,
अगर हो सके तो,
सिल भी दे ये चाक-ए-जिगर।

ऐ मेरे हक़ीम,
है सब कुछ बेअसर,
कुछ तो मर्ज़ की दवा कर।

ओ हमसफ़र,
मंज़िल होती है बिलकुल अकेली,
अब तो तूँ रास्ता बन साथ यूँ ही चला कर।

(२)

ज़रूरी नहीं है
तुम हाथ बढ़ाओ
तो एक हाथ का साथ मिले
कई बार, बार बार अपना हाथ खींच लेने वाले लोग
ये एहसास दिला जाते हैं
प्रेम तुम्हारे भीतर ही था, है, और रहेगा
ख़ुदा के लिये, खुद के लिये और यूँ ही सब के लिये

(३)
किसी को चाहने की भी एक उम्र होती है
और कई बार ये उम्र जन्मों में गिनी जाती है
फिर आप खुद को चाहने लगते है
और ये खुद जो चाहना
ख़ुदा और उस की पूरी कायनात को चाहने जैसा है 

Friday 17 July 2020

कवि १/२

(१)
लोक जन की बात न कह पाने वाला
ज़मीन पर लड़ाई न लड़ पाने वाला कवि
उस सुनहरी मोटी जिल्द वाली किताब की तरह होता है
जिस का अंत किताबों की सजी अलमारी से शुरू
और परिणति रद्दी में बदलने से होता है
(२)
किसान की जीवटता
उस के संघर्षों की कहानी की माला में गुथी होती है
और उस की आशावान होना खेतों में अनाज के बर्बाद होने पर
दुबारा बीज के बो देने में जीवंत हो उठती है
उस की जीवटता और आशावादित के दम पर
जीता, उस की आवाज़ न बन पाने वाला
भीतर से मरा हुआ इंसान
अफ़सर, राजनेता, कवि
और जाने क्या क्या होता है

Friday 10 July 2020

शास्वत प्रेम

प्रेम के इतर सारी भावनायें
तिरोहित हो जाती हैं
समय के साथ बचा रहता है प्रेम

शरीर तक ही सीमागत है
वासना
शरीर के सीमा में सब नश्वर है
प्रेम अनंत आकाश की सीमा में है 

शास्वत हमेशा हमेशा

मृत्यु और जीवन के परे

हाँ जब मुझ से कहे सारे शब्द तुम्हारी प्रार्थना में होंगे
और मुझ से पैदा संगीत तुम्हारा ही संगीत होगा
और की सारे राग और गीत तुम्हारे मेरे प्रेम से लय बद्ध होंगे

हाँ जब तुम्हारा होना मेरा अस्तित्व होगा
और मेरा होना तुम्हारा ही विस्तार

तब मैं मृत्यु और जीवन के परे
उस अनंत यात्रा पर होऊँगा
जो आदि से आदि तक रहेगा

जीवन सफ़र

 सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र  रास्तों के काँटे अपने  अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...