Sunday, 15 May 2016

ख़्वाब और हक़ीक़त

तुम किसी ख़्वाब से ख़ूबसूरत हो की तुम हक़ीक़त हो,
तुम्हें चाहने और न भूलने के सिवा कोई रास्ता ही नहीं।

कि तुम हो न सके अपने ये भी सच है लेकिन,
तुम ग़ैर भी न हो पाओगे झूठ ये भी तो नहीं।

और की दुनिया की ख़्वाहिश हो, की दो पर लग जायें,
ज़मीन पर हो पाँव उस से बेहतर मुझे कुछ लगा ही नहीं।

की बदलते ख़्वाब से हैं मेरे देश की तक़दीर दिखाने वाले,
हक़ीक़त ये है की वो तस्वीर में कहीं भी है ही नहीं।

और की झूठ के पर हो सकते है, 'मुसाफ़िर' उड़ भी सकता हैं,
पर इस सफ़र में दो गज़ ज़मीन मिले ये मयस्सर ही नहीं।

3 comments:

जीवन सफ़र

 सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र  रास्तों के काँटे अपने  अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...