Thursday, 28 January 2016

जिंदगी-ट्रेन-लड़की-चाय

ट्रेन डब्बा मुसाफिर जिंदगी
तेज धीमी रफ़्तार समय
भागते हांफाते आराम

बैठे तो रेत जैसे जिंदगी
हथेली किसी के हाथ में
फिसल जाता है, हाथ भी रेत सा

सड़क पर नज़रे बचाकर
डरी सहमी सी भागती जिंदगी
पीछे निराशा में डूबे
कुंठित लोगों की फब्तियाँ

कनों मे वो आवाज़ न पड़े
वो दिल को भेदती आवाज़
कड़वाहट और मिठास
जैसे कड़ी पत्ती चाय

जिंदगी बिना दूध कड़ी पत्ती चाय
गरम फिर भी अच्छी है
जैसे भागती रहती हो
रुकी ठंडी हुई और ख़तम

11 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत आभार
      बधाई!!!

      Delete
  2. जिंदगी एक पहेली है..नये प्रतीकों से सजी सुंदर रचना

    ReplyDelete
  3. बहुत आभार !!!

    ReplyDelete
  4. उम्दा पंक्तियाँ..

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर रचना ।

    आपके ब्लॉग को यहाँ शामिल किया गया है ।
    ब्लॉग"दीप"

    यहाँ भी पधारें-
    तेजाब हमले के पीड़िता की व्यथा-
    "कैसा तेरा प्यार था"

    ReplyDelete
  6. यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016 को ( पाँच लिंकों का आनन्द ) http://halchalwith5links.blogspot.in पर ( अंक - 202 ) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें ब्लॉग पर आपका स्वागत है -- धन्यवाद ।

    ReplyDelete

जीवन सफ़र

 सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र  रास्तों के काँटे अपने  अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...