ट्रेन डब्बा मुसाफिर जिंदगी
तेज धीमी रफ़्तार समय
भागते हांफाते आराम
बैठे तो रेत जैसे जिंदगी
हथेली किसी के हाथ में
फिसल जाता है, हाथ भी रेत सा
सड़क पर नज़रे बचाकर
डरी सहमी सी भागती जिंदगी
पीछे निराशा में डूबे
कुंठित लोगों की फब्तियाँ
कनों मे वो आवाज़ न पड़े
वो दिल को भेदती आवाज़
कड़वाहट और मिठास
जैसे कड़ी पत्ती चाय
जिंदगी बिना दूध कड़ी पत्ती चाय
गरम फिर भी अच्छी है
जैसे भागती रहती हो
रुकी ठंडी हुई और ख़तम
तेज धीमी रफ़्तार समय
भागते हांफाते आराम
बैठे तो रेत जैसे जिंदगी
हथेली किसी के हाथ में
फिसल जाता है, हाथ भी रेत सा
सड़क पर नज़रे बचाकर
डरी सहमी सी भागती जिंदगी
पीछे निराशा में डूबे
कुंठित लोगों की फब्तियाँ
कनों मे वो आवाज़ न पड़े
वो दिल को भेदती आवाज़
कड़वाहट और मिठास
जैसे कड़ी पत्ती चाय
जिंदगी बिना दूध कड़ी पत्ती चाय
गरम फिर भी अच्छी है
जैसे भागती रहती हो
रुकी ठंडी हुई और ख़तम
बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteबधाई!!!
बहुत खूब।
ReplyDeleteजिंदगी एक पहेली है..नये प्रतीकों से सजी सुंदर रचना
ReplyDeleteआभार !!!
Deleteबहुत आभार !!!
ReplyDeleteउम्दा पंक्तियाँ..
ReplyDeleteआभार!!!
Deleteबहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को यहाँ शामिल किया गया है ।
ब्लॉग"दीप"
यहाँ भी पधारें-
तेजाब हमले के पीड़िता की व्यथा-
"कैसा तेरा प्यार था"
आभार!!!
Deleteयह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016 को ( पाँच लिंकों का आनन्द ) http://halchalwith5links.blogspot.in पर ( अंक - 202 ) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें ब्लॉग पर आपका स्वागत है -- धन्यवाद ।
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