Saturday, 16 April 2011

मै जानता हूँ


अपने होठो को दबाना जानता हूँ,
बात को दिल मे छुपाना जानता हूँ ।
वो समझते हैं कि अनजान हूँ मै,
अनजान हूँ, मै ये जताना जानता हूँ ।

बेवफ़ाई की हदें मालूम हैं पर,
मैं वफ़ा को ही निभाना जानता हूँ ।
डरता नही महफ़िल मे लेने से नाम,
बस बदनामी से बचाना जानता हूँ

ऐसा नही रोया नही रातों को जगकर,
मैं तकिये में आँसू छुपाना जानता हूँ ।
मुस्कुराने की नहीं आदत है हमको,
मुस्कुरा के ग़म छुपना जानता हूँ ।

6 comments:

  1. बहुत बढ़िया रचना!
    मगर शीर्षक ठीक कीजिए!
    मैं जनता हूँ को
    "मैं जानता हूँ" कर दीजिए!

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  2. आपका आशिर्वाद है .
    शीर्षक सही कर दिया

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  3. bahut sachhi baat likhi hia bhai ..... pyar ka matlab likh .....dil ko chu lene wali lines hia ...

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  4. wah gyanendra ji, aapke kavitva ko naman karta hoon.....ekdum saral bhavbodh....sadhuwaad swikaren....

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  5. mashallah!!!....really meaningful

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  6. हर बार की तरह शानदार प्रस्तुति

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