अपने होठो को दबाना जानता हूँ,
बात को दिल मे छुपाना जानता हूँ ।वो समझते हैं कि अनजान हूँ मै,
अनजान हूँ, मै ये जताना जानता हूँ ।
बेवफ़ाई की हदें मालूम हैं पर,
मैं वफ़ा को ही निभाना जानता हूँ ।
डरता नही महफ़िल मे लेने से नाम,
बस बदनामी से बचाना जानता हूँ ।
ऐसा नही रोया नही रातों को जगकर,
मैं तकिये में आँसू छुपाना जानता हूँ ।
मुस्कुराने की नहीं आदत है हमको,
मुस्कुरा के ग़म छुपना जानता हूँ ।
बहुत बढ़िया रचना!
ReplyDeleteमगर शीर्षक ठीक कीजिए!
मैं जनता हूँ को
"मैं जानता हूँ" कर दीजिए!
आपका आशिर्वाद है .
ReplyDeleteशीर्षक सही कर दिया
bahut sachhi baat likhi hia bhai ..... pyar ka matlab likh .....dil ko chu lene wali lines hia ...
ReplyDeletewah gyanendra ji, aapke kavitva ko naman karta hoon.....ekdum saral bhavbodh....sadhuwaad swikaren....
ReplyDeletemashallah!!!....really meaningful
ReplyDeleteहर बार की तरह शानदार प्रस्तुति
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