Wednesday, 17 August 2011

मेरे कातिल


पास कातिल मेरे मुझमें जान आने दे,
जान ले लेना पर थोडा तो संभल जाने दे।

तू तसव्वुर में मेरे रहा है बरसों से,
खुद को नजरों से सीने में उतर जाने दे।

कुछ ठहर जा कि छुपा लूँ मैं दर्द सीने का,
या तेरे सीने से लिपट कर बिफर जाने दे।

तुझको पाना नहीं है मेरी मंजिल,
तू जरा खुद में मुझको समां जाने दे।

अब गुजारिश है 'मुसाफिर' की खुदा से,
वो मुझे मेरे खुदा से ही मिल जाने दे।

24 comments:

  1. how-----u r technocrate----but certainly----u can do a lot in this era too

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  2. Really very nice..awesome...I would suggest you to write on present situation..what common man thinks about the current situation of our country...

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  3. Kya bat HAi......
    Gyan Bhaiya Rocks.ssssss

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  4. खूबसूरत ग़ज़ल.. बहुत बढ़िया...

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  5. बहुत सुन्दर, लाजबाब है आपकी रचना
    मन करता है बस पड़ता रहू ...,,,

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  6. Sundar gajal aur sundar bhaw.

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  7. khubsurat gazal kya bat hai ek ek sher daad ki kabil vaah vaah ....

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  8. वेहद खूबसूरत ग़ज़ल,अच्छी लगी !

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  9. achhi gazl hai.....lekin ek chiz chubhi...sahi word tu hai tun nahi...mitra musaafir...

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  10. ho sakta hai vivek main yahan galat hoon per mujhe eske liye hindi ke jankar se milna hoga.
    aur mujhe ye uchcharan ke tahat sahi lagta hai kai baar uchcharan kiya hai maine tu+n hi aata hai aur aise hi ye phir tu+ne

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  11. लिखते रहिये यूँ ही.

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  12. behad khoobsoorat gazal...
    teesra sher to gazab...

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  13. rachnaa psand aaee ...
    kaee baar typing-mistake ho jaya karti hai
    never mind vivekji ka thanks karna mt bhuliyegaa

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  14. सबको सह्र्दय धन्यवाद.

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  15. जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें

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  16. वेहद खूबसूरत ग़ज़ल

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  17. जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
    दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
    ईद मुबारक

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