उनकी आँखे तो एक समंदर है,
पर कितने मौसम की प्यास बैठी है ।
अपने सागर से मिलने को ,
कितनी ही नदियाँ उदास बैठी है।
पर कितने मौसम की प्यास बैठी है ।
अपने सागर से मिलने को ,
कितनी ही नदियाँ उदास बैठी है।
सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र रास्तों के काँटे अपने अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...
यह तो बहुत ही जानदार शेर लिखा है आपने!
ReplyDeleteसब उसकी मेहरबानी है.
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