Saturday 18 January 2020

शृष्टि में निरंतर प्रवाहित प्रेम

अभिभूत हूँ उस प्रेम से,
जो घटित हुआ एक पल में,
और जीवंत रहेगा, सदियों तक।

एक अपरिचित का प्रेम,
उस के पलकों के कोरों पर रुके,
अश्रु के दो बूँद,
जो उस के चेहरे पर सरकने से पहले,
उतर चुके थे मेरे हृदय पर प्रेम बन कर।

वो भाव जो उस के चेहरे,
आँखों में देख सकता था,
उस के चेहरे पर पढ़ सकता था,
वो उस का मेरे ओर हाथ बढ़ाना,
प्रेम ऊर्जा का हृदय तक पहुँच जाना।

सब घटित होता है, उस पल में,
बिना किसी अपेक्षा के,
बिना किसी कर्ता भाव के,
प्रेम यूँ ही घटित होता है निश्छल,
शृष्टि में निरंतर प्रवाहित प्रेम।

© Gyanendra Tripathi

2 comments:

  1. प्रेम को परिभाषित करते रहा ही श्रृंगार है, श्रृष्टि का अधिकार है। शुभकामनाएं स्वीकार करें ।

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  2. रचना का शीर्षक पूरी रचना पर छाया हुआ है.बहुत सुन्दर.

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