अभिभूत हूँ उस प्रेम से,
जो घटित हुआ एक पल में,
और जीवंत रहेगा, सदियों तक।
एक अपरिचित का प्रेम,
उस के पलकों के कोरों पर रुके,
अश्रु के दो बूँद,
जो उस के चेहरे पर सरकने से पहले,
उतर चुके थे मेरे हृदय पर प्रेम बन कर।
वो भाव जो उस के चेहरे,
आँखों में देख सकता था,
उस के चेहरे पर पढ़ सकता था,
वो उस का मेरे ओर हाथ बढ़ाना,
प्रेम ऊर्जा का हृदय तक पहुँच जाना।
सब घटित होता है, उस पल में,
बिना किसी अपेक्षा के,
बिना किसी कर्ता भाव के,
प्रेम यूँ ही घटित होता है निश्छल,
शृष्टि में निरंतर प्रवाहित प्रेम।
© Gyanendra Tripathi
जो घटित हुआ एक पल में,
और जीवंत रहेगा, सदियों तक।
एक अपरिचित का प्रेम,
उस के पलकों के कोरों पर रुके,
अश्रु के दो बूँद,
जो उस के चेहरे पर सरकने से पहले,
उतर चुके थे मेरे हृदय पर प्रेम बन कर।
वो भाव जो उस के चेहरे,
आँखों में देख सकता था,
उस के चेहरे पर पढ़ सकता था,
वो उस का मेरे ओर हाथ बढ़ाना,
प्रेम ऊर्जा का हृदय तक पहुँच जाना।
सब घटित होता है, उस पल में,
बिना किसी अपेक्षा के,
बिना किसी कर्ता भाव के,
प्रेम यूँ ही घटित होता है निश्छल,
शृष्टि में निरंतर प्रवाहित प्रेम।
© Gyanendra Tripathi
प्रेम को परिभाषित करते रहा ही श्रृंगार है, श्रृष्टि का अधिकार है। शुभकामनाएं स्वीकार करें ।
ReplyDeleteरचना का शीर्षक पूरी रचना पर छाया हुआ है.बहुत सुन्दर.
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