Monday 16 May 2016

निश्छल

निर्मल-कोमल
कोमल-शीतल
शीतल-पावन
और निश्छल हों।

हम जो देखें
और जो जानें
बस वो माने
जीवन सफल हो।

प्रेम स्वयं में
और जगति में
और जगति के
हर कण कण में।

प्रेम भाव में
निश्छल मन से
प्रेम जगति में देखे
वो सफल हो।

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-05-2016) को "अबके बरस बरसात न बरसी" (चर्चा अंक-2345) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर रचना
    भ्रमर ५

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