तुम मुझे भूले नहीं ये जानकार अच्छा लगा;
जैसे किताबों में फूल, सूखे ही सही काफ़ी तो हैं.
मिल न सके हम,यादों का आना अच्छा लगा;
डूबे न किनारे, लहरों का छू जाना काफ़ी तो है.
दौड़ कर तुमसे लिपट जाऊँ ख़याल अच्छा लगा;
मुझको छूकर तुम तक गई,ये हवा काफ़ी तो है.
मैं एक क़तरा जिंदगी, तुम समंदर अच्छा लगा;
तुम नहीं न सही, अश्को का समंदर काफ़ी तो है.
खूबसूरत ख्याल्।
ReplyDeleteआभार !!!
Deleteबहुत सुन्दर अहसास...
ReplyDeleteसहृदय आभार !!
Deleteभावभीनी पोस्ट है बधाई|
ReplyDeleteआपके यहाँ निरंतर आगमन की अपेक्षा है.
Deleteआभार.
प्रणाम
चर्चा मंच के माध्यम से दूसरों तक पहुँचाने के लिए आभार!!
ReplyDeleteप्रणाम