तुम भीड़ में भी कितने अकेले हो,
ठहर कर देखो.
तुम भाग नहीं सकते,
ख़ुद से और इस भीड़ से.
ख़ुद से और इस भीड़ से.
पर तुम बिलकुल अकेले हो,
और तुम्हे जीना होगा इस सच्चाई को.
उस पल में सुनते हो लोगों को,
या नहीं सुनते,
पर तुम्हारे भीतर है एक आवाज.
आवाज जो बार बार कहती है,
कि तुम अकेले हो.
ऐसा होता है,
जब तुम भीड़ में होते हो.
पर क्या भीड़ तुम्हे जान पाती है.
नहीं, नहीं जान पाती.
तो फिर तुम भीड़ में अकेले हुए.
सत्य यही है,
तुम अकेले आये थे, अकेले जाओगे.
बाकी सब भ्रम है.
सत्य है, तुम्हारा अकेलापन.
एक बहुत बड़े एकाकीपन का एहसास होता है जब भीड़ में अकेला होता है कोई.. बहुत गहरी वेदना!!
ReplyDeleteकल नेहरू प्लेस गया था. वहाँ बैठा था, तो सारी दुनिया सामने थी, पर एक भीड़ सी.
Deleteगहन ...एकांत सदा साथ देता है.... और कोई दे न दे
ReplyDeleteजी हाँ, आप किसी और के साथ हो या न हो, पर अपने साथ हो सकते हैं, हमेशा.
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
होलिकोत्सव की शुभकामनाएँ!
आभार!
Deleteआपको भी होलिकोत्सव की शुभकामनाएँ.