Monday, 19 March 2012

है बस प्रेम की संभावना

निश्तेज हो फिर सूर्य भी; 
उतर आए यदि मेरे मन आकाश में.
है मेरी ये सौम्यता; 
निर्विकार सी, चंद्रमा सी ही सधी.
पृथ्वी सी सहनशीलता;
आकाश सा विस्तृत हृदय,
है देखता, सबको खुद में देखता. 

लो फिर से मैं गढ़ रहा हूँ;
प्रेम की अवधारणा,
खुद से, खुद के प्रेम की, क्या है विकट संभावना?
खुद में सबको देखना;
या सब मे खुद को देखना,
एक ही पर्याय है,है ये बस प्रेम में संभावना.
निरुत्तरित क्यों हो रहा;
ये विस्तृत आकाश भी,
मेरे मन आकाश में, है बस प्रेम की संभावना.

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर..

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  2. यही संभावना मन को निर्मल और जीवन को अर्थ प्रदान करती है!!

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  3. चरण स्पर्श स्वीकार करें |
    बहुत दिनों से गायब थे आप और यहाँ आपका इंतज़ार था|

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    1. मार्च ने व्यस्त कर रखा है और थका भी डाला है!! शायद कुछ दिनों यही चले!!

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  4. हमें अंदाजा था इसका, होली में आप पटना थे और आने के बाद बैंक में फिनान्सिअल इयर क्लोसिंग ...........
    अब तो २-३ अप्रैल तक फुर्सत मिलेगी.
    प्रणाम

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