तेरे पहलू से जो उठ गया हूँ मैं.
आईना देखता हूँ, मैं तुझको पाता हूँ;
कि नज़र हो तेरी, और बयाँ हूँ मैं.
अपना साया भी तो अपना न रहा;
बिछुड़ के तुझसे यूँ तन्हा हूँ मैं.
ज़ख्म तेरा हो या मेरा हो;
अपने इस दिल मे जी रहा हूँ मैं.
है 'मुसाफिर', है मोहब्बत का सफ़र;
आश है तेरी तो चल रहा हूँ मैं.
जुदाई का दर्द हर छंद में दिख रहा हि.. बहुत गहरे भाव!!
ReplyDeleteदिल और दर्द का रिस्ता बहुत गहरा है.
Deleteऔर दर्द जुदाई का हो तो बात ही क्या है.
सुन्दर भावों को शब्दों में ढाला है आपने ज्ञानेन्द्रजी. बहुत अच्छा लगा आपके ब्लाग को देख कर.
ReplyDeleteबह्र को थोड़ा और समय दें.
बह्र पर अभी पकड़ नहीं बनी है.
Deleteऔर वर्तनी मे भी कभी कभी ग़लती हो जाती है.
हमेशा चाह थी किसी गुरु का सानिध्या प्राप्त हो,
पर ये सौभाग्य नहीं मिला.
गर्दिशे शाम खुशनुमा सवेरे में बदले, यही कामना है।
ReplyDeleteये तो एक अलग मनः स्थिति मे मान के उद्गार हैं,
ReplyDeleteवैसे लता जी की गायी हुई ये ग़ज़ल सार्थक है अपने पूर्ण अर्थो मे.
गम का खजाना तेरा भी है मेरा भी;
ये नज़राना तेरा भी है मेरा भी.
आपके आशीर्वाद से सब ठीक ही रहेगा.
प्रणाम
दुख-दर्द की इंतहां है!
ReplyDeleteये एक सौगात भी है. बहुत कम लोगों को मिलती है.
Deleteदर्द को बखूबी लिखा है
ReplyDeleteआप लोगों का आशीर्वाद है.
Deletedard ko bayan karati bahut hi dard mai kavitaa .badhaai aapko.
ReplyDeletemere blog per aaiye
www.prernaargal.blogspot.com
आभार!
DeleteBehad Marmik Prastuti..........
ReplyDeletesunder bhavo se sajaya hai aapne.......
aabhar!
Deleteअच्छी कोशिश !!
ReplyDelete