मैं पतंग तूँ मुझको उड़ाये;
दूर मुझे ले जायें हवाएं।
प्रेम डोर से तुझसे जुड़ी मै;
सोचूँ कब वापस तूँ बुलाये।
मैं जो तुझसे मिलना चाहूँ;
डोर तूँ ख़ीचे बस यही उपाय।
डोर कहीं कट जाए अगर तो;
वक़्त के झोकें दूर ले जायें।
तेरे एक इशारे पर मैं;
इठलाउँ इतराउँ हाय!
दूर मैं तुझसे हवा से लड़ती;
दर्द मेरा कोई समझ न पाये।
दूर मुझे ले जायें हवाएं।
प्रेम डोर से तुझसे जुड़ी मै;
सोचूँ कब वापस तूँ बुलाये।
मैं जो तुझसे मिलना चाहूँ;
डोर तूँ ख़ीचे बस यही उपाय।
डोर कहीं कट जाए अगर तो;
वक़्त के झोकें दूर ले जायें।
तेरे एक इशारे पर मैं;
इठलाउँ इतराउँ हाय!
दूर मैं तुझसे हवा से लड़ती;
दर्द मेरा कोई समझ न पाये।
पतंग के माध्यम से दिल के दर्द को आपने बाखूबी बयान किया है♥3
ReplyDeleteसही है,त्रिपाठी जी...प्रेम डोर एसी ही होती है...
ReplyDeleteडोरी कटने का डर
ReplyDeleteप्रेम डोर से तुझसे जुड़ी मै;
ReplyDeleteyahi patang aaj tang kar gai.
ho sake to yah post bhi dekhen
कनकैया-कनकौवा का कर काँचा माँझा
आकाश-पुष्प की खातिर भागे भटके-झूरे ||
Thanks for visiting DINESH ki.....
प्रेम डोर से तुझसे जुड़ी मै;
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति ....
पंतग तो उड़ने के लिए ही होती है। उसका महत्व आसमान में ही है,जमीन पर नहीं।
ReplyDeleteNAI POST KAB??
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति ....
ReplyDeleteकुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 15 दिनों से ब्लॉग से दूर था
ReplyDeleteइसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !
उम्दा रचना.....
ReplyDeleteकुछ ऐसे ही विचार बहुत पहले गद्य रुप में आये थे, जब समय मिले-देखियेगा:
http://udantashtari.blogspot.com/2008/07/blog-post_18.html