वो मुकद्दर में है नहीं मेरे;
कह न पाया हम तो हैं तेरे।
यूँ खामोश चेहरा वो मुझे दीखता है;
जैसे आइना सामने पड़ा हो मेरे।
शाम के साथ मै भी ढलता हूँ;
वो रौशनी जो साथ नहीं है मेरे।
य़ू तो कट ही जायेगा जिंदगी का सफ़र;
मौत आ जायेगी चुपके से जहन में मेरे।
मै सोचता था पा लूं मै मरने का सुकून ;
कि मौत आये पर हो उनकी बाँहों के घेरे।
कह न पाया हम तो हैं तेरे।
यूँ खामोश चेहरा वो मुझे दीखता है;
जैसे आइना सामने पड़ा हो मेरे।
शाम के साथ मै भी ढलता हूँ;
वो रौशनी जो साथ नहीं है मेरे।
य़ू तो कट ही जायेगा जिंदगी का सफ़र;
मौत आ जायेगी चुपके से जहन में मेरे।
मै सोचता था पा लूं मै मरने का सुकून ;
कि मौत आये पर हो उनकी बाँहों के घेरे।
बहुत बढ़िया विरह रचना लिखी है आपने!
ReplyDeleteबहुत खूब....
ReplyDeleteहो सनम की बाहों में जो,
वो मौत क्या मौत होती है।
हज़ार ज़िन्दगियों से भी हसीं,
ज़िन्दगी, वो मौत होती है ॥