Tuesday, 3 May 2011

कुछ यादें


एक एहसास यही दिल मे बसाके रखिये,
मुझे अपना ना सही, गैर बनाकर रखिये.
मै जो नज़दीक नहीं तो दूर ही वाज़िब,
कु्छ नही हूँ, मुझे कुछ तो बनाकर रखिये.

कौन समझेगा, ये दिल के जख्म है गहरे,
उनको बस दिल में छुपाकर रखिये.
कौन समझेगा अब इन अश्को की कीमत,
है ये मोती आँखो में छुपाकर रखिये.

हौसला है तो गुजर जायेगा अँधेरो का सफ़र,
रोशनी होने तक खुद को बचाकर रखिये.
रात कट जायेगी यादों का सहारा तो है,
सुनहरी यादों को दिल मे बसाकर रखिये.

7 comments:

  1. हौसला है तो गुजर जायेगा अँधेरो का सफ़र,
    रोशनी होने तक खुद को बचाकर रखिये.
    Really it is a woderful approach to maintain the safety of lover. Please keep it up.
    Kr. Shiv Pratap Singh

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  2. बहुत गहरी बात कह दी है आपने अपने मुक्तकों में!
    लिखते रहिए...
    शब्दों का पुनरावृत्ति दोष भी ठीक होने लगेगा!

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  3. गहरी बात कह दी आपने। नज़र आती हुये पर भी यकीं नहीं आता।

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  4. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |

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  5. आज है पहली दफा तुमने पुकारा भाई.
    फ़र्ज़ मेरा है कि दूँ तुमको सहारा भाई.
    सिर्फ लिखिए न कभी ब्लोगरों को पढ़िए भी,
    मशविरा मुफ्त में देता है तुम्हारा भाई.

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  6. कौन समझेगा, ये दिल के जख्म है गहरे,
    उनको बस दिल में छुपाकर रखिये.

    वाह...बहुत खूब...आप बहुत अच्छा कहते हैं...लिखते रहिये.

    नीरज

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  7. बहुत खूबसूरत, नज़्म/ग़ज़ल/मुक्तक।

    शास्त्री जी की बात पर ध्यान दीजिएगा। पुनरावृत्ति थोड़ी खटक रही है।

    और कुंवर साहब की बातें गौ़र करें ....

    “फ़र्ज़ मेरा है कि दूँ तुमको सहारा भाई.”

    इस अवसर को लपक लीजिए। इतना अच्छा गुरु ढूंढे नहीं मिलेगा।

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