Saturday, 11 June 2011

प्यार के सूखे हुए फूल

कुछ दिनों शहर से बाहर था अतः नयी रचना आने में कुछ देरी हो गयी

प्यार के सूखे हुए फूल हैं कताबों में अभी;
रौशनी उम्मीद की है दिल के चरागों में अभी।

मैं जल रहा हूँ कि जलना है मुकद्दर में मेरे;
बस तेरे प्यार के मरहम की जरूरत है अभी।

गैर तुझको मैं समझूं ये तो न मुमकिन है;
मुझको तूँ अपना बना ले ये रास्ता है अभी।

खोज ही लूँगा तुझे मैं बहता हुआ एक दरिया हूँ;
प्यास मुझमें समंदर कि जो बाकी है अभी।

मैं मर गया भी तो बस देखना ये चाहूँगा;
कि मैं मर के भी तुझमें कही बाकी हूँ अभी।

14 comments:

  1. बहुत सुन्दर ग़ज़ल!
    ब्लॉग का हैडर भी अच्छा लग रहा है!

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  2. इस हैडर में पथ कहाँ है?
    क्या आकाश मार्ग से राहें नापोगे!

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  3. अच्छी रचना है.

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  4. सुन्दर ग़ज़ल!
    बेहतरीन भाव। बेहतरीन लिखा है आपने...

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  5. अच्छी गज़ल है.. ख्याल और बयान दोनों खूबसूरत!!

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  6. तो क्या सोचना बंद कर दिया था ,

    महबूबा को भूल गए थे क्या ?

    अच्छी बात नहीं हैं ??



    याद करते हो नहीं--

    भरते हो दम यारी का ||

    दवा लेते हो नहीं

    बहाना करते हो बीमारी का ||

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  7. इन फूलों को जब चुना था
    तब प्लास्टिक के फूल समझे थे क्या?

    अरे नासमझ ! फूल हैं, मुरझाएंगे ही ||

    कहीं ज्यादा प्यास लगने पर
    उनका रस खुद ही तो नहींन चूस लिया ||

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  8. नहींन = नहीं

    no sorry---ok

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  9. कोई खुद से अलग हो तो उसे याद करें.
    अगर याद करें तो भूलने की बात आये...........

    पूरे जीवन्त थे फ़ूल वो किताबों मे सूखे है.
    दिल मे झाँक कर देखिये अभी भी खुश्बू ताजा है.

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  10. वाह जबरदस्त ||

    जवाब से हो गया मस्त ||

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  11. बहुत सुन्दर और लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
    मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!

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  12. musafir ji jalna to mukaddar hai....

    patanga bhi jal jaata hai, shama ke liye..

    lekin marham ke liye jalna,jalna nahi hai....

    bahut khoobsoorat rchna..

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  13. सुन्दर रचना ...भा गई .

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