कुछ दिनों शहर से बाहर था। अतः नयी रचना आने में कुछ देरी हो गयी।
रौशनी उम्मीद की है दिल के चरागों में अभी।
मैं जल रहा हूँ कि जलना है मुकद्दर में मेरे;
बस तेरे प्यार के मरहम की जरूरत है अभी।
गैर तुझको मैं समझूं ये तो न मुमकिन है;
मुझको तूँ अपना बना ले ये रास्ता है अभी।
खोज ही लूँगा तुझे मैं बहता हुआ एक दरिया हूँ;
प्यास मुझमें समंदर कि जो बाकी है अभी।
मैं मर गया भी तो बस देखना ये चाहूँगा;
कि मैं मर के भी तुझमें कही बाकी हूँ अभी।
मैं जल रहा हूँ कि जलना है मुकद्दर में मेरे;
बस तेरे प्यार के मरहम की जरूरत है अभी।
गैर तुझको मैं समझूं ये तो न मुमकिन है;
मुझको तूँ अपना बना ले ये रास्ता है अभी।
खोज ही लूँगा तुझे मैं बहता हुआ एक दरिया हूँ;
प्यास मुझमें समंदर कि जो बाकी है अभी।
मैं मर गया भी तो बस देखना ये चाहूँगा;
कि मैं मर के भी तुझमें कही बाकी हूँ अभी।
बहुत सुन्दर ग़ज़ल!
ReplyDeleteब्लॉग का हैडर भी अच्छा लग रहा है!
इस हैडर में पथ कहाँ है?
ReplyDeleteक्या आकाश मार्ग से राहें नापोगे!
अच्छी रचना है.
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल!
ReplyDeleteबेहतरीन भाव। बेहतरीन लिखा है आपने...
अच्छी रचना
ReplyDeleteअच्छी गज़ल है.. ख्याल और बयान दोनों खूबसूरत!!
ReplyDeleteतो क्या सोचना बंद कर दिया था ,
ReplyDeleteमहबूबा को भूल गए थे क्या ?
अच्छी बात नहीं हैं ??
याद करते हो नहीं--
भरते हो दम यारी का ||
दवा लेते हो नहीं
बहाना करते हो बीमारी का ||
इन फूलों को जब चुना था
ReplyDeleteतब प्लास्टिक के फूल समझे थे क्या?
अरे नासमझ ! फूल हैं, मुरझाएंगे ही ||
कहीं ज्यादा प्यास लगने पर
उनका रस खुद ही तो नहींन चूस लिया ||
नहींन = नहीं
ReplyDeleteno sorry---ok
कोई खुद से अलग हो तो उसे याद करें.
ReplyDeleteअगर याद करें तो भूलने की बात आये...........
पूरे जीवन्त थे फ़ूल वो किताबों मे सूखे है.
दिल मे झाँक कर देखिये अभी भी खुश्बू ताजा है.
वाह जबरदस्त ||
ReplyDeleteजवाब से हो गया मस्त ||
बहुत सुन्दर और लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteमेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
musafir ji jalna to mukaddar hai....
ReplyDeletepatanga bhi jal jaata hai, shama ke liye..
lekin marham ke liye jalna,jalna nahi hai....
bahut khoobsoorat rchna..
सुन्दर रचना ...भा गई .
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