हर कदम चल के,मैं सोचता हूँ,ये क्या हुआ;
जब ठहरता हूँ,तो पूछता हूँ,अब क्या हुआ.
तू दौड़ कर बहुत दूर निकल जाए तो क्या;
देखना तुझपे,तेरे होने का असर क्या हुआ.
मुश्किलें आएँगी तो आए सफ़र के दौरान
जो आसान ही हुआ तो फिर सफ़र क्या हुआ.
जिंदगी पूछ ही लेती है जीने का सबब यूँ;
कि तमाम उम्र गुज़ार ली हासिल क्या हुआ.
जिसे तू तजुर्बा कहता है,वो तेरा अपना नहीं;
जो जमाने से मिला है,वो तेरा अपना न हुआ.
वो जाने की राह तो आने से अलग होगी ही;
आने-जाने के दर्मयाँ तेरा अपना क्या हुआ.
क्या मिला है 'मुसाफिर' इस सफ़र के दौरान;
जो तेरा खुद का रहा हो ऐसा तजुर्बा क्या हुआ.