देखता हूँ ये कैसी मेरी लाचारी है.
दिल की दरख्तों में तस्वीर तुम्हारी है;
कच्ची अमिया खाने का भी मन है;
नाकसीर फूटने की तुझको बीमारी है.
दूर जा कर भी छूट न पाएगी;
तेरे मेरे मन की लगी जो यारी है.
तुम हो तराजू लाए बाट नहीं लाये;
'प्यार' तौलने की तुम्हे बीमारी है.
कैसे मिलोगे और कहाँ ये बतला दो;
नाम की नहीं मुझको तेरी दरकारी है.
राहें रहें मिलती 'मुसाफिर' बस क्या;
मंज़िल की नहीं कोई नशातारी है.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार26/2/13 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteआदरणीया राजेश जी,
Deleteबहुत बहुत आभार!!!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
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ReplyDeleteबहुत गजब बहुत अच्छी रचना आन्नद मय करती रचना
आज की मेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
अतिउत्तम
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