लौट कर तुमको मिलेंगे फिर वहीं;
रास्ते जाते कहाँ हैं फिर कहीं.
चलना है, बस चलना ही है जिंदगी;
हैं कहाँ, कोई यहाँ मंज़िल कहीं.
तुम किनारों पर भले महफूज़ हो;
हो समंदर के बिना कुछ भी नहीं.
चाहतों को इस कदर न चाहना;
कि जिंदगी को लगे, है ही नहीं.
'मुसाफिर' हो आज़ाद दिल से सोचना;
कि जिंदगी क्या है, और क्या नहीं.
्वाह ………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteशुक्रिया वंदना जी!!!!!
Deleteबेहतरीन रचना | बहुत खूब |
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट:-
करुण पुकार
achha hai
ReplyDeleteआभार!!!
DeleteNice.
ReplyDeleteआभार!!!
Deletesundar prastuti..
ReplyDeleteसहृदय आभार !!!
Deleteमन को छूती हुयी रचना !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार!!!
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