समझने को कहाँ कुछ भी रहा अब;
कब वो समझा अपना, मेरा रहा कब.
कि खुद में जलने का भी मज़ा है;
मैने उस से शिकायत ही किया कब.
गैर होकर भी जो लगता था अपना;
अपना होकर वो गैर ही हुआ अब.
जाँच तफ़सील से ज़रा कर लो तुम;
दिल मेरा था कभी उसका हुआ अब.
'मुसाफिर' हूँ अंधेरों से नहीं डरता हूँ;
अंधेरा अपना रहा, उजाला हुआ कब.