(१)
रोटियाँ
चूल्हे पर पकती है
सिर्फ़ रोटियाँ पकती है
ऐसा तो नहीं है
साथ में पक रहा होता है
मन में प्रेम
और कि किसे पता
रोटियों मे भी पकता हो प्रेम
या की प्रेम मे पक जाती हो रोटियाँ
और उस में बस जाती हो एक ख़ुश्बू
और मिठास
(२)
रोटियाँ
चूल्हे पर पकती हुयी
सूखा देती है खुद का पानी
या की पानी के सूखने से
तय होता है
उनका पकना
और जिंदगी की धूप में
इंसान का पकना
तय होता है
आँखो से पानी के खो जाने से
चेहरे और होठ की बनावटी हँसी के साथ
आँखों का साथ न दे पाने से
रोटियाँ
चूल्हे पर पकती है
सिर्फ़ रोटियाँ पकती है
ऐसा तो नहीं है
साथ में पक रहा होता है
मन में प्रेम
और कि किसे पता
रोटियों मे भी पकता हो प्रेम
या की प्रेम मे पक जाती हो रोटियाँ
और उस में बस जाती हो एक ख़ुश्बू
और मिठास
(२)
रोटियाँ
चूल्हे पर पकती हुयी
सूखा देती है खुद का पानी
या की पानी के सूखने से
तय होता है
उनका पकना
और जिंदगी की धूप में
इंसान का पकना
तय होता है
आँखो से पानी के खो जाने से
चेहरे और होठ की बनावटी हँसी के साथ
आँखों का साथ न दे पाने से
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - राजेंद्र यादव जी की पुण्यतिथि में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteआभार!!!
Deleteख़ूबसूरत अहसास...लाज़वाब अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteप्रणाम
Deleteआभार!!!