(१)
रोटियाँ
चूल्हे पर पकती है
सिर्फ़ रोटियाँ पकती है
ऐसा तो नहीं है
साथ में पक रहा होता है
मन में प्रेम
और कि किसे पता
रोटियों मे भी पकता हो प्रेम
या की प्रेम मे पक जाती हो रोटियाँ
और उस में बस जाती हो एक ख़ुश्बू
और मिठास
(२)
रोटियाँ
चूल्हे पर पकती हुयी
सूखा देती है खुद का पानी
या की पानी के सूखने से
तय होता है
उनका पकना
और जिंदगी की धूप में
इंसान का पकना
तय होता है
आँखो से पानी के खो जाने से
चेहरे और होठ की बनावटी हँसी के साथ
आँखों का साथ न दे पाने से
रोटियाँ
चूल्हे पर पकती है
सिर्फ़ रोटियाँ पकती है
ऐसा तो नहीं है
साथ में पक रहा होता है
मन में प्रेम
और कि किसे पता
रोटियों मे भी पकता हो प्रेम
या की प्रेम मे पक जाती हो रोटियाँ
और उस में बस जाती हो एक ख़ुश्बू
और मिठास
(२)
रोटियाँ
चूल्हे पर पकती हुयी
सूखा देती है खुद का पानी
या की पानी के सूखने से
तय होता है
उनका पकना
और जिंदगी की धूप में
इंसान का पकना
तय होता है
आँखो से पानी के खो जाने से
चेहरे और होठ की बनावटी हँसी के साथ
आँखों का साथ न दे पाने से