Monday 5 May 2014

फ़ुर्सत में कहां हूं मैं


मैं समंदर हूं कि हवा हूं मैं;
नहीं हूं खुद में तो कहाँ हूं मैं|

लम्हें वो जिनको ज़ी नहीं पाया;
उन ही लम्हों को जोड़ता हूँ मैं|

सांस बिखरी हों या तेरी यादें;
एक तड़फ़ है जो ज़ी रहा हूं मैं|

एक अरसा हुआ देखे तुझको;
अरसा पहले ये पल जिया हूं मैं|

मिलना फ़ुर्सत से सफ़र के बाद;
'मुसाफिर' हूं फ़ुर्सत में कहां हूं मैं|

22 comments:

  1. समंदर हूँ कि बादे-सबा हूँ मैं..,
    खुद में नहीं हूँ तो कहाँ हूँ मैं..,

    बादे -सबा = पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएँ

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    1. बहुत बहुत आभार!!!

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (07-05-2014) को "फ़ुर्सत में कहां हूं मैं" (चर्चा मंच-1605) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. रचना को ज्यादे लोगों तक पहुँचाने के लिए आभार!!!

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  3. बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति...

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  4. बहुत खूब ... मुसाफिर का काम तो चलना ही है ...

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    1. वक़्त के साथ चलते हुए ...... जो महसूस किया, वही कलम ने लिख दिया ..... हौसला बढ़ाने के लिए आभार!!

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ,मुसाफिर को फुर्सत मिल जाये तो कैसा मुसाफिर। ....

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    1. सहृदय आभार!!
      प्रणाम!!

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  6. कल 09/05/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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    1. ज्यादे लोगों से साझा करने के लिए आभार!!!

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  7. बेहतरीन कविता......

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  8. अच्छे भावभूमि से उपजी एक भावभीनी ग़ज़ल।

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    1. बहुत बहुत आभार!!!

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