१
माँ का गर्भ
सुंदर जीवात्मा
मानव शरीर
२
दृष्टि ठहरी
दुनिया देखने
और पहचानने की
३
ठहरे और
ठिठके कदम
डग भरने को
४
हृदय प्रेम
ठहराव साँसों का
प्रेम अनुभूति
५
प्रथम कदम
वाषना प्रधान
ठहराव शरीर
६
गहन अनुभूति
प्रेम की उचईयाँ
ठहराव प्रेम
७
जीवन ठहराव
संगीत नृत्य प्रेम
परमात्मा
८
आत्मा परमात्मा
एक ही ठाँव
एक में ठहराव
९
साँसें उखड़ती
मृत्यु सजग
नयी यात्रा का पड़ाव
ठहराव
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (27-12-2014) को "वास्तविक भारत 'रत्नों' की पहचान जरुरी" (चर्चा अंक-1840) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार!!!
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