Thursday, 25 December 2014

ठहराव














माँ का गर्भ
सुंदर जीवात्मा
मानव शरीर


दृष्टि ठहरी
दुनिया देखने
और पहचानने की


ठहरे और
ठिठके कदम
डग भरने को


हृदय प्रेम
ठहराव साँसों का
प्रेम अनुभूति


प्रथम कदम
वाषना प्रधान
ठहराव शरीर


गहन अनुभूति
प्रेम की उचईयाँ
ठहराव प्रेम


जीवन ठहराव
संगीत नृत्य प्रेम
परमात्मा


आत्मा परमात्मा
एक ही ठाँव
एक में ठहराव


साँसें उखड़ती
मृत्यु सजग
नयी यात्रा का पड़ाव

ठहराव

Monday, 5 May 2014

फ़ुर्सत में कहां हूं मैं


मैं समंदर हूं कि हवा हूं मैं;
नहीं हूं खुद में तो कहाँ हूं मैं|

लम्हें वो जिनको ज़ी नहीं पाया;
उन ही लम्हों को जोड़ता हूँ मैं|

सांस बिखरी हों या तेरी यादें;
एक तड़फ़ है जो ज़ी रहा हूं मैं|

एक अरसा हुआ देखे तुझको;
अरसा पहले ये पल जिया हूं मैं|

मिलना फ़ुर्सत से सफ़र के बाद;
'मुसाफिर' हूं फ़ुर्सत में कहां हूं मैं|

Saturday, 3 May 2014

कुछ साँसों को जिंदगी से अलग कर दूं


चाहता हूं कुछ साँसें अपनी जिंदगी से अलग कर दूं
वो जो तुम्हारी यादों के साथ ली थी मैं ने
और जिनके साथ घुली हवा मेरे रक्त में समा गयी
जो मेरे रक्त के साथ सीने से होते हुए
मेरे दिल और दिमाग़ में अपनी जगह बना चुकी है
और जिसने तुम्हारे यादों का असर और गहरा कर दिया है
मैं चाहता हूं तुम्हारी याद का हर असर ख़त्म कर दूं
मैं चाहता हूं कुछ साँसों को अपनी जिंदगी से अलग कर दूं

Sunday, 26 January 2014

इस दुनियावी सफ़र में अब रखा क्या है.

सफ़र है जिंदगी, और यहाँ होता क्या है;
जो भी मिलता है, वो भी मिलता क्या है.

जिंदगी के सफ़र पर निकले हो तुम;
सिवा मौत के अपना पराया क्या है.

एक मोहब्बत ही तो है दिल मे तेरे;
लूटा दे यूँ भी पास तेरे रखा क्या है.

समझना था राह की मुश्किलों को तुम्हें;
और समझना था की ये दुनिया क्या है.

घर को लौट ही चल 'मुसाफिर' अब तूँ;
इस दुनियावी सफ़र में अब रखा क्या है.

जीवन सफ़र

 सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र  रास्तों के काँटे अपने  अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...