सफ़र है जिंदगी, और यहाँ होता क्या है;
जो भी मिलता है, वो भी मिलता क्या है.
जिंदगी के सफ़र पर निकले हो तुम;
सिवा मौत के अपना पराया क्या है.
एक मोहब्बत ही तो है दिल मे तेरे;
लूटा दे यूँ भी पास तेरे रखा क्या है.
समझना था राह की मुश्किलों को तुम्हें;
और समझना था की ये दुनिया क्या है.
घर को लौट ही चल 'मुसाफिर' अब तूँ;
इस दुनियावी सफ़र में अब रखा क्या है.
रचना को ज्यादे से ज्यादे लोगों तक पहुँचाने के लिए बहुत बहुत आभार|
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकार करें.
बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteआभार!
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