सागर से गहरा होता है;
दिल का जो रिश्ता होता है।
खोजोगे फिर शहर-शहर तुम;
यहाँ कौन किसका होता है।
जान ही लोगे, देर से लेकिन;
और यहाँ क्या क्या होता है।
हमने जो सोचा होता है;
अंजाम कहाँ वैसा होता है।
हमने भी देखें हैं दुश्मन;
इंसान का इंसान होता है।
क्या खोज रहे हो बाज़ारों में;
यहाँ तो बस सौदा होता है।
तुमको मुक़द्दर चाहिये अपना;
और यहाँ पैसा लगता है।
तुम मुफ़लिस हो मेरे 'मुसाफिर';
प्यार कहाँ माँगे मिलता है।
ज्यादे से ज्यादे लोगों तक रचना पहुचाने का उद्यम करने के लिए आपका सहृदय आभार!!!
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !!!
Deleteबहुत बहुत आभार !!!
ReplyDeleteजी जरूर
ReplyDeleteसहृदय आभार !!!