Saturday 23 June 2012
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जीवन सफ़र
सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र रास्तों के काँटे अपने अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...
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सबके अपने रास्ते अपने अपने सफ़र रास्तों के काँटे अपने अपने अपने दर्द अपनी अपनी मंज़िल अपना अपना दुख अपनी अपनी चाहते अपना अपना सुख सबकी अप...
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जाने कब कैसे ख्वाबों के पंख मिले; जाने कब कैसे उड़ाने की चाह मिले. जब-जब जीवन से इस पर तकरार हुई है; मुझको जीवन से बदले में आह म...
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कितने सारे दर्द हैं जिनको जीता हूँ दुनिया कहती है मैं बड़ा हो गया हूँ खुश होता हूँ मैं जब बच्चा होता हूँ माँ फिर से अपना आँचल क...
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
ReplyDeleteनई पोस्ट .....मैं लिखता हूँ पर आपका स्वगत है
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDeleteसहृदय आभार !!!!
Deleteउम्मीद है आप आते रहेंगे समय निकल कर.
बहुत सुन्दर, बधाई.
Deleteआपका बहुत बहुत आभार S.N.Shukla जी
Deleteउनके आने पे दिल का लुटना तो लाजमी है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना है ...
हौसलाफजाई के लिए सहृदय धन्यवाद!!!!!!
Deleteलिखने के लिए नई ऊर्जा मिलाती है.
बहुत खूब ........
ReplyDeleteउदय वीर सिंह जी आपका सहृदय आभार !!!!!
Deleteअच्छी अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteप्रणाम आभार !!!!
Deleteकौन लुटा और कौन लूटा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
M.VERMA ji सहृदय आभार !!!!!!!!
DeleteEmotionally charged poem!
ReplyDeleteThanking you from bottom of heart
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