प्रेम के इतर सारी भावनायें
तिरोहित हो जाती हैं
समय के साथ बचा रहता है प्रेम
शरीर तक ही सीमागत है वासना
शरीर के सीमा में सब नश्वर है
प्रेम अनंत आकाश की सीमा में है
शास्वत हमेशा हमेशा
तिरोहित हो जाती हैं
समय के साथ बचा रहता है प्रेम
शरीर तक ही सीमागत है वासना
शरीर के सीमा में सब नश्वर है
प्रेम अनंत आकाश की सीमा में है
शास्वत हमेशा हमेशा
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
12/07/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
बहुत सही।
ReplyDeleteप्रेम शाश्वत है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति
सुन्दर
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