(१)
लोक जन की बात न कह पाने वाला
ज़मीन पर लड़ाई न लड़ पाने वाला कवि
उस सुनहरी मोटी जिल्द वाली किताब की तरह होता है
जिस का अंत किताबों की सजी अलमारी से शुरू
और परिणति रद्दी में बदलने से होता है
(२)
किसान की जीवटता
उस के संघर्षों की कहानी की माला में गुथी होती है
और उस की आशावान होना खेतों में अनाज के बर्बाद होने पर
दुबारा बीज के बो देने में जीवंत हो उठती है
उस की जीवटता और आशावादित के दम पर
जीता, उस की आवाज़ न बन पाने वाला
भीतर से मरा हुआ इंसान
अफ़सर, राजनेता, कवि
और जाने क्या क्या होता है
लोक जन की बात न कह पाने वाला
ज़मीन पर लड़ाई न लड़ पाने वाला कवि
उस सुनहरी मोटी जिल्द वाली किताब की तरह होता है
जिस का अंत किताबों की सजी अलमारी से शुरू
और परिणति रद्दी में बदलने से होता है
(२)
किसान की जीवटता
उस के संघर्षों की कहानी की माला में गुथी होती है
और उस की आशावान होना खेतों में अनाज के बर्बाद होने पर
दुबारा बीज के बो देने में जीवंत हो उठती है
उस की जीवटता और आशावादित के दम पर
जीता, उस की आवाज़ न बन पाने वाला
भीतर से मरा हुआ इंसान
अफ़सर, राजनेता, कवि
और जाने क्या क्या होता है
बहुत सुन्दर।
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