तुम्हें कहीं अगर मिल जाऊँ मैं,
तो मुझे बता देना।
रात के किसी उजियारे में,
दिन के किसी अँधियारे में,
तुम्हें कहीं अगर मिल जाऊँ मैं,
तो मुझे बता देना।
पर्वत झील पहाड़ नदी या,
जीवन के भीतर गलियारे में,
तुम्हें कहीं अगर मिल जाऊँ मैं,
तो मुझे बता देना।
और कहीं जो ठहर सके तुम,
गहरे भीतर मन के द्वारे,
तुम्हें कहीं अगर मिल जाऊँ मैं,
तो मुझे बता देना।
© Gyanendra
तो मुझे बता देना।
रात के किसी उजियारे में,
दिन के किसी अँधियारे में,
तुम्हें कहीं अगर मिल जाऊँ मैं,
तो मुझे बता देना।
पर्वत झील पहाड़ नदी या,
जीवन के भीतर गलियारे में,
तुम्हें कहीं अगर मिल जाऊँ मैं,
तो मुझे बता देना।
और कहीं जो ठहर सके तुम,
गहरे भीतर मन के द्वारे,
तुम्हें कहीं अगर मिल जाऊँ मैं,
तो मुझे बता देना।
© Gyanendra
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-05-2019) को "आसन है अनमोल" (चर्चा अंक- 3335) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Very good write-up. I certainly love this website. Thanks!
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