Sunday, 20 September 2015
Tuesday, 1 September 2015
वह जो मैं हूँ ही नहीं
यूं कि फिर से अंजान हो जाऊँ तुम्हे,
कि तुम मुझे जानने पहचानने लगे।
हो जाना चाहता हूँ
कि तुम मुझे जानने पहचानने लगे।
हो जाना चाहता हूँ
फिर से अपरिचित
मिटाने को एक भ्रम
भ्रम की तुम जानने लगे हो
मुझे, तुम पहचानने लगे हो
बिना उतरे हुए प्रेम में
तुम ने परख़ लिया
अपने तर्कों पर
वह जो मैं हूँ ही नहीं
शब्द प्रहार करते है
मैं ने हाथ बढ़ा कर
छूना चाहा पारस को
की भर दे अपनी कुछ चमक
वो कहता है, 'थैंक यू '
और मैं कई कदम पीछे धकेला जाता हूँ
और कुछ टूटता है
शब्द प्रहार करते है
एक गहरे आघात के साथ
बिना आवाज़ किये
छूना चाहा पारस को
की भर दे अपनी कुछ चमक
वो कहता है, 'थैंक यू '
और मैं कई कदम पीछे धकेला जाता हूँ
और कुछ टूटता है
शब्द प्रहार करते है
एक गहरे आघात के साथ
बिना आवाज़ किये
प्रेम जीवंतता में अमर
प्रेम शब्द का
ठीक ही होगा
मन मस्तिष्क से सूख जाना
प्रेम जीवित होता है
अपनी जीवंतता में
परिभाषायें मृत कर देती है
एक गहरी सजगता में
जहाँ नही होता मन
मन मे उपजे विचार और तर्क
परिभाषायें मृत हो जाती है
और प्रेम उन्हीं पलों में
जीवंत हो कर अमर हो जाता है
सदा के लिए, एक जीवंत अनुभव
ठीक ही होगा
मन मस्तिष्क से सूख जाना
प्रेम जीवित होता है
अपनी जीवंतता में
परिभाषायें मृत कर देती है
एक गहरी सजगता में
जहाँ नही होता मन
मन मे उपजे विचार और तर्क
परिभाषायें मृत हो जाती है
और प्रेम उन्हीं पलों में
जीवंत हो कर अमर हो जाता है
सदा के लिए, एक जीवंत अनुभव
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जीवन सफ़र
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