कई बार लगता है
तुम तक ना पहुँच पाना जैसे जिंदगी मे एक हार है
एक हार जो मैने खुद चुनी है
और देखता हूँ लोगों को चुनते हुए अपनी हार
क्यों की उन्होने चुना है उचाईयों को चढ़ना
और सच यही है की उचाईयों को चढ़ने के इस उपक्रम में
हम अपनों से बहुत दूर हो जाते हैं
और धीरे धीरे खो देते है संवेदनाए
वो संवेदनाए जो ताक़त थी हमारी
और हम हार जाते हैं उचाईयों पर
हम खो देते हैं, खुद को संवेदनाओं के साथ
तुम तक ना पहुँच पाना जैसे जिंदगी मे एक हार है
एक हार जो मैने खुद चुनी है
और देखता हूँ लोगों को चुनते हुए अपनी हार
क्यों की उन्होने चुना है उचाईयों को चढ़ना
और सच यही है की उचाईयों को चढ़ने के इस उपक्रम में
हम अपनों से बहुत दूर हो जाते हैं
और धीरे धीरे खो देते है संवेदनाए
वो संवेदनाए जो ताक़त थी हमारी
और हम हार जाते हैं उचाईयों पर
हम खो देते हैं, खुद को संवेदनाओं के साथ
वाह !
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