प्यार का एक नूरानी असर माँ के चेहरे पर झुर्रियों में लिखी आयतों में पढ़ने की कोशिश करता हूँ,
और माँ को हर एेसे ख़ूबसूरत चेहरे के पीछे छुपे ख़ूबसूरत दिल से, आँखो से झाँकते हुए देखता हूँ,
और देखता हूँ, आँखो के कोरों पर ठहरी हर दिन प्यार की रोशनी में, ओस को चमकते हुए
कुछ पिताओं के चेहरे भी माँ की तरह ख़ूबसूरत हो जाते है,
शर्त बस ये है कि वो अपने बाप होने के अहंकार से बाहर निकल आये
प्रेम वहाँ भी अपना डेरा डाले रहता है, बस अहंकार पर्दे की मानिद ढ़क लेता है,
सब कुछ माँये उससे कब का पीछा छुड़ा लेती है
और माँ को हर एेसे ख़ूबसूरत चेहरे के पीछे छुपे ख़ूबसूरत दिल से, आँखो से झाँकते हुए देखता हूँ,
और देखता हूँ, आँखो के कोरों पर ठहरी हर दिन प्यार की रोशनी में, ओस को चमकते हुए
कुछ पिताओं के चेहरे भी माँ की तरह ख़ूबसूरत हो जाते है,
शर्त बस ये है कि वो अपने बाप होने के अहंकार से बाहर निकल आये
प्रेम वहाँ भी अपना डेरा डाले रहता है, बस अहंकार पर्दे की मानिद ढ़क लेता है,
सब कुछ माँये उससे कब का पीछा छुड़ा लेती है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26-08-2015) को "कहीं गुम है कोहिनूर जैसा प्याज" (चर्चा अंक-2079) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार !!!!
Deleteसच लिखा है पर ईगो शायद ये सब नहीं करने देती बाप की ...
ReplyDeleteआभार!!!
Deleteमाफ़ी चाहूंगा आप का कॉमेंट देर दे पढ़ा|