पुरुष, तुम प्रकृति (स्त्री) से जन्मे
प्रकृति का ही एक हिस्सा हो
प्रकृति होने को, खुद को जानने को
जानना होगा तुम्हे प्रकृति को
क्यों की तुम उसी के हो
या कि तुम भी वही हो
स्वयं के संरक्षण के लिए
प्रकृति द्वारा रची एक कृति
और पाल बैठे तुम एक अहंकार
खुद के होने का अहंकार
समझ बैठे प्रकृति को अपनी जागीर
वस्तुतः नहीं है, तुम्हारा कोई अस्तित्व
तुम अपूर्ण, पूर्ण होने के लिए
जानना होगा प्रकृति को
करना होगा उसे प्रेम
बिल्कुल उसके प्रेम जैसा निश्छल
त्यागना होगा तर्क और अहंकार
जीवंत करना होगा खुद के भीतर स्त्रीत्व
फिर तुम नाचते गाते देख सकोगे
जान सकोगे उसका प्रेम स्वरूप
तुम्हे जीवित ही रखना होगा
खुद के अस्तित्व को
और उसके लिए, रखना ही होगा
प्रकृति को जीवित खुद में
प्रकृति का ही एक हिस्सा हो
प्रकृति होने को, खुद को जानने को
जानना होगा तुम्हे प्रकृति को
क्यों की तुम उसी के हो
या कि तुम भी वही हो
स्वयं के संरक्षण के लिए
प्रकृति द्वारा रची एक कृति
और पाल बैठे तुम एक अहंकार
खुद के होने का अहंकार
समझ बैठे प्रकृति को अपनी जागीर
वस्तुतः नहीं है, तुम्हारा कोई अस्तित्व
तुम अपूर्ण, पूर्ण होने के लिए
जानना होगा प्रकृति को
करना होगा उसे प्रेम
बिल्कुल उसके प्रेम जैसा निश्छल
त्यागना होगा तर्क और अहंकार
जीवंत करना होगा खुद के भीतर स्त्रीत्व
फिर तुम नाचते गाते देख सकोगे
जान सकोगे उसका प्रेम स्वरूप
तुम्हे जीवित ही रखना होगा
खुद के अस्तित्व को
और उसके लिए, रखना ही होगा
प्रकृति को जीवित खुद में
kash ki har insaan ki soch aisee hoti ......ati sundar ...
ReplyDeleteप्रणाम आभार!!!
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteआभार!!!
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