Saturday, 30 November 2013

एहसास


जब भी एहसास इतने गहरे हुए 
कि ज़ुबान बयाँ न कर सके 
मुझे मेरा मौन अच्छा लगा
लहरों की आवाज़ और पंछी की चहक अच्छी लगी
और लगा की खुद के होने के अहम से
कहीं अच्छा है, खुद के न होने  का एहसास 

2 comments:

  1. बहुत बहुत आभार !!

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  2. आपके अहसास ने मुझे बहुत प्रभावित किया ...जितनी छोटी उतनी ही भावभरी ....बधाई ज्ञानेंद्र जी !

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