सोचता हूँ आया था क्या ले कर;
जाऊंगा जहाँ को मैं क्या दे कर.
मिलने का अंदाज अलग होता है;
लोग वो मिलते है फासला ले कर.
शाम ढलती है मैं भी ढलता हूँ;
फिर सम्हलता हूँ हौसला ले कर.
दुनिया में इंसान वो भी होते हैं;
खुश होते है दर्द किसी का ले कर.
जब दर्द सीने का हद से पार हुआ;
ज़मीन आती है ज़लज़ला ले कर.
तुम 'मुसाफिर',ये जिंदगी है सफ़र;
चलो काँधे पे सलीब अपना ले कर.
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteप्रणाम!!!
Deleteरचना को ज्यादे लोगों तक पहुँचाने के लिए सहृदय आभार|
बहुत सुन्दर और प्रेरक पोस्ट!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार!
अभिनंदन!!!
Deletesacchi bat.....
ReplyDeleteआभार !!!
Deleteसुंदर रचना.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !!!
Deleteशानदार गज़ल, हर शेर लाजवाब.....
ReplyDeleteप्रणाम
Deleteसहृदय आभार!!!
its very nice.. excellent... it describes the truth of life... inspirational too....
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