शाम के धुंधले प्रकाश में
मेरा खुद से बातें करना
दीवारों को छू कर खुद का होना, महसूस करना
महसूस करना कि श्वासों की निरंतरता ही प्राणों की गति का प्रमाण है.
मेरा अस्तित्व तो अनुभूतियों की गहराई में उतर कर,
शून्य के अस्तित्व को चुनौती दे रहा है.
तुम नहीं समझ सकते मैं कहाँ हूँ,
क्यों कि तब मुझे भी नहीं पता होता, मैं कौन हूँ, कहाँ हूँ.
सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteप्रणाम.
ReplyDeleteआभार!!!
प्राणवान अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteसहृदय आभार!!!
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteआभार !!!
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteबहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !!!!
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