Thursday, 2 February 2012

काश मैं बदल सकता वक़्त


गुज़रते हुए देखें हैं, साल कई;
गुज़रते हुए देखें हैं, लोग कई.

पर दर्द असहनीय और गहरा देखा;
जब बेटे को पिता के कंधों पर जाता देखा.

काल से पूछता हूँ, क्या वो भी है किसी का बाप;
या सिर्फ़ बना है, ऐसों के लिए अभिशाप.

सुना है आत्मा अजर है, अमर है;
किंतु नही समझना चाहता इसे.

सिर्फ़ समझना चाहता हूँ वो दुख;
जब देखता हूँ, अश्रु पूरित नेत्र.

नही है कोई अधिकार;
नही बदल सकता मैं वक़्त.

पर काश मैं बदल सकता ..............

13 comments:

  1. दिल को छूटी हुई रचना.. वो सवाल जो आपने अंत में छोड़ा है वह सदा अनुत्तरित रहने वाला है!!

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    1. अभी पास ही मचा है कोहराम कही;
      कैसे कह दूँ दिल से कि सब अच्छा है.

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  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज charchamanch.blogspot.com par है |

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    1. मुझे लोगों तक पहुँचाने के लिए आभार.

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  3. गहराई है शब्दों में ..
    kalamdaan.blogspot.in

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  4. उफ़ कितनी गहन बात आपने कह दी………कुछ भी कहने मे असमर्थ्।

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    1. ग़म का खजाना तेरा भी है, मेरा भी;
      ये नज़राना तेरा भी है, मेरा भी.

      कुछ कहने की ज़रूरत कहाँ है.

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  5. सहृदय आभार.

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  6. बहुत दु:खद होती है यह स्थिति।

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  7. बेटा बाप के कान्धे जाये - यह तो भीषणतम दुख है! :-(

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    1. मित्रों की यादों एवं स्मृतियों के साथ पीयूष को श्रद्धांजली

      संवेद पत्रिका के संपादक किशन कालजयी के बेटे पीयूष कृष्ण की हाल ही में मुंबई में एक ट्रेन एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी।वह 25 साल के थे।

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  8. kitni gehan anubhuti................

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