गुज़रते हुए देखें हैं, साल कई;
गुज़रते हुए देखें हैं, लोग कई.
पर दर्द असहनीय और गहरा देखा;
जब बेटे को पिता के कंधों पर जाता देखा.
काल से पूछता हूँ, क्या वो भी है किसी का बाप;
या सिर्फ़ बना है, ऐसों के लिए अभिशाप.
सुना है आत्मा अजर है, अमर है;
किंतु नही समझना चाहता इसे.
सिर्फ़ समझना चाहता हूँ वो दुख;
जब देखता हूँ, अश्रु पूरित नेत्र.
नही है कोई अधिकार;
नही बदल सकता मैं वक़्त.
पर काश मैं बदल सकता ..............
दिल को छूटी हुई रचना.. वो सवाल जो आपने अंत में छोड़ा है वह सदा अनुत्तरित रहने वाला है!!
ReplyDeleteअभी पास ही मचा है कोहराम कही;
Deleteकैसे कह दूँ दिल से कि सब अच्छा है.
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज charchamanch.blogspot.com par है |
ReplyDeleteमुझे लोगों तक पहुँचाने के लिए आभार.
Deleteगहराई है शब्दों में ..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
सहृदय आभार.
Deleteउफ़ कितनी गहन बात आपने कह दी………कुछ भी कहने मे असमर्थ्।
ReplyDeleteग़म का खजाना तेरा भी है, मेरा भी;
Deleteये नज़राना तेरा भी है, मेरा भी.
कुछ कहने की ज़रूरत कहाँ है.
सहृदय आभार.
ReplyDeleteबहुत दु:खद होती है यह स्थिति।
ReplyDeleteबेटा बाप के कान्धे जाये - यह तो भीषणतम दुख है! :-(
ReplyDeleteमित्रों की यादों एवं स्मृतियों के साथ पीयूष को श्रद्धांजली
Deleteसंवेद पत्रिका के संपादक किशन कालजयी के बेटे पीयूष कृष्ण की हाल ही में मुंबई में एक ट्रेन एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी।वह 25 साल के थे।
kitni gehan anubhuti................
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