मुझे ये जिंदगी का राज समझ आया करीने से,
कि खुश्बू फूल की आती है मेहनत करके जीने से।
तुम्हे कतरा कह कर लोग ठुकराए तो भी क्या,
समंदर बनके निकले मोहब्बत,बूँद के ही सीने से.
रोटी बनती नही है रुपये दौलत या नगीने से.
आगर न सीँचे मिट्टी आदम का घीसू पसीने से।
घुटन सी एक मैं महसूस करता हूँ शहरों मे,
यहाँ अब दिन गुज़रते है बरसों या महीने से.
चलो रुख़ कर लो 'मुसाफिर' गावों की तरफ फिर से,
मिला है क्या तुम्हे इस शहर मे घुट घुट के जीने से.
कि खुश्बू फूल की आती है मेहनत करके जीने से।
तुम्हे कतरा कह कर लोग ठुकराए तो भी क्या,
समंदर बनके निकले मोहब्बत,बूँद के ही सीने से.
रोटी बनती नही है रुपये दौलत या नगीने से.
आगर न सीँचे मिट्टी आदम का घीसू पसीने से।
घुटन सी एक मैं महसूस करता हूँ शहरों मे,
यहाँ अब दिन गुज़रते है बरसों या महीने से.
चलो रुख़ कर लो 'मुसाफिर' गावों की तरफ फिर से,
मिला है क्या तुम्हे इस शहर मे घुट घुट के जीने से.
ज़मीन से जुड़े लोग अक्सर इस मनोदशा से गुजरते हैं.. बस यह जुड़ाव बना रहे यही कामना है!!
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाएं!!
बहुत अच्छे विचार !!
ReplyDeleteनया वर्ष मुबारक हो !!
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeletebahut sunder prastuti.aur utne hi sunder bhav
ReplyDeleteक्या आपकी उत्कृष्ट-प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रवारीय चर्चामंच
की कुंडली में लिपटी पड़ी है ??
charchamanch.blogspot.com