Friday 28 October 2011

जिंदगी क्या है


जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो;
मोहब्बत क्या है किसी को अपना बनाकर देखो.

सफ़र जिंदगी का है नये रास्तों से ही;
जिंदगी क्या है,नये रास्ते बनाकर देखो.

समंदर के सीने मे मौज है कितनी;
समंदर के सीने मे तुम समाकर देखो.

तुम समझ न सकोगे दूरियो की तड़प को;
अंधेरा होता है क्या, रोशनी को हटा कर देखो.

आग होती है क्या, हर तरफ धुआँ सा लगता है;
जलन होती है क्या, आग सीने मे लगाकर देखो.

वो 'मुसाफिर' से पूछते है की हाले दिल क्या है;
हालेदिल क्या है, ये मुझसे दिल लगाकर देखो.

18 comments:

  1. बहुत सुन्दर, बधाई

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  2. ..बहुत प्रभावशाली रचना ...बेहतरीन अंदाज़ बात कहने का

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  3. ग़ज़ल के भाव पसंद आए!

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  4. बहुत ही अच्छा लिखा है .

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  5. वाह ज्ञानेंद्र जी ,क्या बात है.खूब लिखा है आपने.

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  6. कुँवर कुसुमेश जी की टिपण्णी को दोहराता हूँ ...!

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  7. अपने रास्ते आप बनाने का आनन्द अलग ही होता है..... सुंदर पंक्तियाँ

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  8. waah... behtareen...
    ek-ek sher lajawaab...
    bahut badhiya ghazal...

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  9. गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
    मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com

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  10. जिंदगी क्या है ......... खुबसूरत वादियों में एक तन्हा आवाज काफी है मिशाल बनने को / प्रतिध्वनित होती ,आवाज को आवाज देती ,संजीदा लेखनी ..... बधाईयाँ जी /

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  11. bhavo ki bahut hi sundar abhivykti....
    behtarin rachana hai..

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