जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो;
मोहब्बत क्या है किसी को अपना बनाकर देखो.
सफ़र जिंदगी का है नये रास्तों से ही;
जिंदगी क्या है,नये रास्ते बनाकर देखो.
समंदर के सीने मे मौज है कितनी;
समंदर के सीने मे तुम समाकर देखो.
तुम समझ न सकोगे दूरियो की तड़प को;
अंधेरा होता है क्या, रोशनी को हटा कर देखो.
आग होती है क्या, हर तरफ धुआँ सा लगता है;
जलन होती है क्या, आग सीने मे लगाकर देखो.
वो 'मुसाफिर' से पूछते है की हाले दिल क्या है;
हालेदिल क्या है, ये मुझसे दिल लगाकर देखो.
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteमंगलकामनाएँ!
बहुत सुन्दर, बधाई
ReplyDelete..बहुत प्रभावशाली रचना ...बेहतरीन अंदाज़ बात कहने का
ReplyDeleteखूबसूरत कविता...
ReplyDeleteग़ज़ल के भाव पसंद आए!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है .
ReplyDeletebahut sundar..keep writing...
ReplyDeleteवाह ज्ञानेंद्र जी ,क्या बात है.खूब लिखा है आपने.
ReplyDeleteकुँवर कुसुमेश जी की टिपण्णी को दोहराता हूँ ...!
ReplyDeleteअपने रास्ते आप बनाने का आनन्द अलग ही होता है..... सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeletesundar abhivyakti....!!
ReplyDeleteahsas achhe hai ......
ReplyDeletesundar vichar !
ReplyDeletewaah... behtareen...
ReplyDeleteek-ek sher lajawaab...
bahut badhiya ghazal...
गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
जिंदगी क्या है ......... खुबसूरत वादियों में एक तन्हा आवाज काफी है मिशाल बनने को / प्रतिध्वनित होती ,आवाज को आवाज देती ,संजीदा लेखनी ..... बधाईयाँ जी /
ReplyDeletebhavo ki bahut hi sundar abhivykti....
ReplyDeletebehtarin rachana hai..