धीरे-धीरे मुझे ये यक़ीन हो गया है
की दुनिया के सारे सुंदर पुरुष
खाना पकाने में कुशल होते हैं
क्यों की सुंदर वही होता है
जो भीतर मन से पका हुआ (परिपक्व) हो
जो ख़ुद को पकाने में कुशल हो
और दुनिया की सारी बहादुर स्त्रियाँ
निकलती हैं घर से बिना परवाह किए
की कौन क्या सोचता है, या कहता है
क्यों की बहादुर वही होता है
जो स्वयं को यूँ जीत ले
कि दूसरों की परवाह न करे
दुनियाँ के सारे सुंदर पुरुष
हार जाते है बहादुर स्त्रियों से
प्रेम में हार जाना ही जीत है
की दुनिया के सारे सुंदर पुरुष
खाना पकाने में कुशल होते हैं
क्यों की सुंदर वही होता है
जो भीतर मन से पका हुआ (परिपक्व) हो
जो ख़ुद को पकाने में कुशल हो
और दुनिया की सारी बहादुर स्त्रियाँ
निकलती हैं घर से बिना परवाह किए
की कौन क्या सोचता है, या कहता है
क्यों की बहादुर वही होता है
जो स्वयं को यूँ जीत ले
कि दूसरों की परवाह न करे
दुनियाँ के सारे सुंदर पुरुष
हार जाते है बहादुर स्त्रियों से
प्रेम में हार जाना ही जीत है
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 18वां कारगिल विजय दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteवाह।
ReplyDeleteवैसे भी सब कुछ उलट-पुलट हो रहा है !
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteइस अनाम रचना के रचइता कौन हैं?
ReplyDeleteअच्छा लिखा
This comment has been removed by the author.
Deleteपढ़ने के लिए और सराहने के लिए धन्यवाद्
Deleteब्लॉग भी हमारा है और रचना भी
ब्लॉग पर सब कुछ स्वरचित ही है
कितना ओढ़ा, कितना बिछाया,
Deleteरिस-रिस कर, कितना जी पाया
इस ब्लॉग पर सब स्वरचित है